डा. राधाकृष्णन जैसे पुस्तक प्रेमी से मिलती है मंजिल

यह बात सही है कि जिसे भी पुस्तकालय से लगाव होता उसके अंदर ज्ञान का भी भंडार होता है। इसका उदाहरण हैं भारत के पहले पूर्व उप राष्ट्रपति और दूसरे पूर्व राष्ट्रपति महान शिक्षाविद् डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन। दूबे छपरा अमरनाथ मिश्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय दूबेछपरा, बलिया के पूर्व प्राचार्य डा. गणेश पाठक के वह प्रेरणास्त्रोत भी हैं। डा. पाठक बताते हैं कि महान शिक्षाविद् डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन दार्शनिक और शिक्षक भी थे। उन्होंने पुस्तक प्रेम के तहत ही यह मुकाम हासिल किया था।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 19 Nov 2018 09:45 PM (IST) Updated:Mon, 19 Nov 2018 09:45 PM (IST)
डा. राधाकृष्णन जैसे  पुस्तक प्रेमी से मिलती है मंजिल
डा. राधाकृष्णन जैसे पुस्तक प्रेमी से मिलती है मंजिल

--लवकुश ¨सह

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जागरण संवाददाता, बलिया : यह बात सही है कि जिसे भी पुस्तकालय से लगाव होता उसके अंदर ज्ञान का भी भंडार होता है। इसका उदाहरण हैं भारत के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति महान शिक्षाविद् डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन। दूबे छपरा अमरनाथ मिश्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय दूबेछपरा के पूर्व प्राचार्य डा. गणेश पाठक के वह प्रेरणास्त्रोत भी हैं। डा. पाठक बताते हैं कि महान शिक्षाविद् डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन दार्शनिक और शिक्षक थे। उन्होंने पुस्तक प्रेम के तहत ही यह मुकाम हासिल किया था। एक बार वह एक पुस्तकालय में गए। वहां लाइब्रेरियन से उन्होंने पुस्तकों की सूची मांगी। जब सूची हाथ में आई तो उन्होंने उसे एक नजर में देख उसे वापस कर दिया। इस पर लाइब्रेरियन ने उनसे सवाल किया कि क्यों महानुभाव इतनी बड़ी सूची में आपको कोई भी पुस्तक पसंद नहीं आई। इस पर डॉ. राधाकृष्णन ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया कि सूची में दर्ज जितनी भी पुस्तकें हैं, वह मेरी पढ़ी हुई हैं। यह सुन कुछ देर के लिए लाइब्रेरियन ताज्जुब में पड़ गया और उन्हें गौर से देखने लगा। इसके बाद जब उन्होंने कई पुस्तकों के अंदर की बातों को बिन पुस्तक देखे ही बताने लगे तो लाइब्रेरियन हैरत में पड़ गया। दरअसल कभी ऐसे इंसान से सामना ही नहीं हुआ था जिसे लाइब्रेरी से इतना लगाव हो।

-शोध पत्रिकाओं का है संग्रह

डा. गणेश पाठक का पुस्तकालय भी जिले में एक उदाहरण है। जिलों एवं बिहार के भी पासवर्ती जिलों के भूगोल विषय के शोधार्थियों को शोध पत्रिकाओं के लिए बाहर नहीं जाना पड़ता है। ऐसा संग्रह उनके घर ही मौजूद है। इनके पुस्तकालय में 35 शोध प्रबन्ध भी संग्रहित हैं, जिनमें से उनके निर्देशन एवं सह निर्देशन में पूर्ण कराए गए 29 शोध प्रबन्ध हैं। शोध कार्यों की गतिविधियों के कारण ही उनके पुस्तकालय में अनेक जिलों के गजेटियर, सेन्सस, मानचित्र आदि भी देखने को मिल जाते हैं। इस तरह डा. पाठक का पुस्तकालय भूगोल के शोधार्थियों के लिए वरदान स्वरूप है। डा. पाठक जर्नल आफ इण्टिग्रेटेड डेवलपमेंट एण्ड रिसर्च, नामक एक अ‌र्द्धवर्षिक शोध पत्रिका भी निकालते हैं। इनके अब तक सोलह अंक निकल चुके हैं एवं वे भी पुस्तकालय में संग्रहित हैं। ------वर्जन------

पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र होती हैं, जिनसे कभी धोखा नहीं मिलता, बल्कि सदैव मार्गदर्शन ही मिलता है। अत: हमें नियमित रूप से प्रतिदिन कुछ समय निकाल कर अच्छी प्रेरणादायक एवं ज्ञानव‌र्द्धक पुस्तकों का अध्ययन अवश्य करना चाहिए। यदि हमें पुस्तकें पढ़ने की आदत पड़ जाए तो मनोरंजन के किसी अन्य साधन की आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी।

-डा. गणेश पाठक, अमरनाथ मिश्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय दूबेछपरा।

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