बहराइच के जरवल में पहला केला प्रसंस्करण यूनिट स्थापित

320 क्विटल क्षमता का 40 लाख की लागत से बना चार चैंबर

By JagranEdited By: Publish:Sun, 27 Sep 2020 09:44 PM (IST) Updated:Sun, 27 Sep 2020 09:44 PM (IST)
बहराइच के जरवल में पहला केला प्रसंस्करण यूनिट स्थापित
बहराइच के जरवल में पहला केला प्रसंस्करण यूनिट स्थापित

संसू, बहराइच : मिनी भुसावल के रूप में मशहूर बहराइच केले की खेती में तो नई इबारत लिख ही रहा है, अब जरवल में जिले का पहला केला प्रसंस्करण यूनिट स्थापित होने से क्षेत्रीय व्यापारियों के साथ गैर प्रांतों में भी पके केले का निर्यात शुरू हो गया है। इससे जहां किसानों में परंपरागत खेती से हटकर केले की खेती के तरफ रुझान बढ़ रहा है तो व्यापारियों को जिले में ही केला मिल जाने से परिवहन शुल्क पर होने वाला खर्च भी बच रहा है। केला प्रसंस्करण यूनिट की लागत व हर माह हो रही बचत को देखते हुए अन्य कई किसान यूनिट स्थापना की कवायद में जुट गए हैं।

जिले में केले की खेती के क्षेत्रफल पर नजर डाले तो 5500 हेक्टेअर में किसान खेती कर रहे हैं। यह आंकड़ा साल दर साल बढ़ ही रहा है। जरवल ब्लॉक के गुलाम मुहम्मद प्रगतिशील किसान हैं। उद्यान विभाग ने वर्ष 2000 में 250 पौध देकर केले की खेती के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया था। जिसका नतीजा रहा है कि वे वर्तमान में 36 एकड़ में सिर्फ केले की ही खेती कर रहे हैं। इससे प्रति वर्ष कम से कम 40 लाख रुपये का फायदा उन्हें हो रहा है। अब उन्होंने राइपनिग चैंबर यानी केला प्रसंस्करण यूनिटि स्थापित कर लिया है। 40 लाख की लागत से बनाए गए इस यूनिट में प्रति वर्ष 40 से 41 लाख रुपये उन्हें खर्चा निकाल कर मिल रहा है। चैंबर की उत्पादन क्षमता 320 क्विटल की है। जिले में पका केला मिलने से क्षेत्रीय व्यापारियों को गैर प्रांतों से पका केले की खरीद नहीं करनी होगी, बल्कि यहां से दिल्ली समेत दूसरे प्रांतों में पका केले का निर्यात शुरू हो गया है। किसान गुलाम मुहम्मद ने डीएम शंभु कुमार को पके केले की धार भेंट कर उसकी गुणवत्ता के बारे में जानकारी दी। डीएम ने कहा कि अन्य किसानों को भी इसके बारे में जागरूक किया जाए, ताकि उनकी आय में बढ़ोतरी हो सके। स्वास्थ्य के लिए लाभकारी जिला उद्यान अधिकारी पारसनाथ ने बताया कि राइपनिग चैंबर में केला पकाने के लिए एथलीन गैस का प्रयोग किया जाता है। गैस से पका केला स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होता है, जबकि अन्य माध्यमों से पकाया जाने वाला केला किसी न किसी तरह नुकसानदेह होते हैं।

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