चहलारी नरेश की वीरता का गवाह 1857 का गदर

महसी (बहराइच) प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की बात जब छिड़ती है चहलारी नरेश बलभद्र सिंह की वीर

By JagranEdited By: Publish:Sat, 12 Jun 2021 10:30 PM (IST) Updated:Sat, 12 Jun 2021 10:30 PM (IST)
चहलारी नरेश की वीरता का गवाह 1857 का गदर
चहलारी नरेश की वीरता का गवाह 1857 का गदर

महसी (बहराइच) : प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की बात जब छिड़ती है, चहलारी नरेश बलभद्र सिंह की वीरता जेहन में कौंध उठती है। उनकी वीरता का गवाह 13 जून 1857 को बाराबंकी जिले में रेठ नदी के तट लड़ा गया अंग्रेजों से लड़ा गया निर्णायक युद्ध है। उन्होंने अवध के विद्रोह की अगुआई करते हुए केवल 18 वर्ष की आयु में अद्भुत पराक्रम का परिचय दिया था।

उनकी शहादत के 163 वर्ष बाद भी बहराइच की धरती उनकी वीरता को समेटे हैं, मगर अफसोस उन्हें सरकार के स्तर वह सम्मान अब तक नहीं मिल पाया जिसके वे हकदार थे। रेठ नदी के तट पर चहलारी नरेश के सेनापतित्व में होने वाला युद्ध अंग्रेजों के विरुद्ध संभवत: अवध की सेना का अंतिम शस्त्र प्रयोग था। तरुण बलिदानी चहलारी नरेश बलभद्र सिंह का बड़ी वीरता के साथ अंग्रेजों का सामना करते हुए वीर गति को प्राप्त होना बहराइच के लिए गौरव का विषय रहा है।

कहा जाता है कि बलभद्र का सिर कटने पर भी धड़ देर तक लड़ता रहा और धरती पर गिरने के पहले अंग्रेज सैनिक को यमलोक पहुंचा दिया।

उनकी वीरता की कहानियां यहां के लोकगीतों में जीवंत है। उन पर कई कवियों ने गीत लिखे हैं, हालांकि उनके वंशज आदित्यभान सिंह की चहलारी पुल का नामकरण उनके नाम पर करने की मांग अब भी अधूरी है।

राजा बलभद्र सिंह का बलिदान युवा पीढ़ी को एकता और अखंडता का संदेश देता है। अपने काव्य में सत्यव्रत सिंह उनकी वीरता का स्मरण कराते हुए कहते हैं-घाघरा के तीर चल कर देख, लिख दिए उस वीर ने जो लेख, उन्हें पढ़कर हो गए कवि धन्य, वीर थे बलभद्र सिंह अनन्य, देखते ही रह गए अंग्रेज, उस अदम्य किशोर का वह तेज।

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