बूढे़ हो गए अंग्रेजों के बनवाए पुल, चलने में लगता है डर
21वीं सदी में सड़कों पर वाहन फर्राटा भर रहे हैं लेकिन इन सड़कों पर नदी नहर और रजवाहों को पार कराने वाले पुल बूढ़े हो गए हैं। इन पर चलने में डर लगता है। पता नहीं कब पुल गिर पड़े कुछ कहां नहीं जा सकता है।
जेएनएन, बागपत। 21वीं सदी में सड़कों पर वाहन फर्राटा भर रहे हैं, लेकिन इन सड़कों पर नदी, नहर और रजवाहों को पार कराने वाले पुल बूढ़े हो गए हैं। इन पर चलने में डर लगता है। पता नहीं कब पुल गिर पड़े, कुछ कहां नहीं जा सकता है।
जनपद में पूर्वी यमुना नहर पर बने पुलों की बात करें तो ककड़ीपुर गांव से डगरपुर गांव के पास तक बने पुलों में से अधिकांश जर्जर हो गए हैं। कोई पुल 1857 में बना, तो कोई 1907 में। ऐसे में यदि कोई वाहन या व्यक्ति पुलों को पार करता है, तो उसे हादसे का भय बना रहता है। यानी ब्रिटिशकालीन पुल लोगों के लिए बड़ा खतरा बने हुए हैं।
सहारनपुर जनपद की बेहट तहसील के फैजाबाद गांव में स्थित हथनीकुंड बैराज के बाएं किनारे से निकली पूर्वी यमुना नहर प्रदेश की प्रमुख नहरों में शामिल है। इस नहर का एक छोर बड़ौत तहसील के ककड़ीपुर गांव तो दूसरा खेकड़ा तहसील के डगरपुर गांव में स्थित है। विभाग के अनुसार 55 किमी से ज्यादा लंबाई में फैली इस नहर में पुलों की संख्या 44 है। इनमें से अधिकांश जर्जर हो गए हैं। उधर, हालत यह है कि इन पर लगे उद्घाटन के पत्थरों का भी अब अता-पता नहीं है।
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पूर्वी यमुना नहर पर बने जर्जर पुल
रमाला गांव में तीन, किशनपुर बराल गांव में दो, बासौली गांव में एक, बासौली गांव के मजरे औरंगाबाद जिठौली में एक, बासौली गांव के मजरे रहमत में एक, रुस्तमपुर गांव में दो, बड़ौत शहर में बड़ौत-छपरौली मार्ग पर एक, बड़ौत शहर में बड़ौत-कोताना मार्ग पर एक, बड़ौत शहर में अमीनगर सराय रोड पर एक, अलावलपुर मार्ग पर एक, क्यामपुर मार्ग पर एक, चोपड़ा मार्ग पर एक, चांदीनगर रोड पर एक, मुबारिकपुर मार्ग पर एक, मेवला भट्ठी में एक, जवाहरनगर में एक, विनयपुर गांव में एक, रटौल गांव में एक, बसौद गांव में एक पुल जर्जर हालत में है। इनमें से अधिकांश पुल 1857 और 1907 में बनाए गए थे, जो अब जर्जर हो गए हैं।
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पुलों पर जोखिम में
लोगों की जान
यमुना नहर पर जर्जर हो चुके पुलों पर पैदल राहगीर ही नहीं चलते हैं, दुपहिया, कार, टेंपो के अलावा बड़े वाहन फर्राटा भरते हैं। यात्रियों से भरी बसें पुलों से होकर गुजरती हैं, लेकिन यह पता नहीं होता कि कब और किस पुल पर हादसा हो जाए। हद तो यह भी है कि एक भी पुल पर खतरे का संकेतक बोर्ड नहीं लगा है। कोई जर्जर पुल यदि गिर जाए तो लोगों के सामने नहर को पार करने का दूसरा विकल्प भी नहीं है।
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सिचाई विभाग के अधिशासी अभियंता उत्कर्ष भारद्वाज ने बताया कि पूर्वी यमुना नहर पर बने पुलों की हालत जर्जर हो चुकी है। इनके दोबारा निर्माण के प्रस्ताव लखनऊ में भेजे गए हैं। जर्जर पुलों पर खतरे के संकेतक बोर्ड लगाए गए हैं।
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जल्द हो पुलों का निर्माण
लोयन गांव के रहने वाले डाक्टर प्रताप का कहना है कि पूर्वी यमुना नहर पर अंग्रेजों के जमाने के पुल बने हुए हैं जो दयनीय हालत में हैं। पता नहीं कि ये कब गिर जाएं और कब बड़ा हादसा हो जाए। इस संबंध में सिचाई विभाग के अधिकारियों को लोगों की जान की फिक्र करते हुए पुलों का जल्द से जल्द निर्माण शुरू कराना चाहिए।
सरूरपुर गांव के सुभाष नैन का कहना है कि पूर्वी यमुना नहर पर जितने भी पुल हैं, वे चलने लायक नहीं हैं, इसलिए दूसरे कामों से पहले सिचाई विभाग को जर्जर पुलों को दोबारा बनाना चाहिए, ताकि लोगों की जान सुरक्षित रह सके।