इनकी तरह आप भी निभाइए इंसानियत का फर्ज
कोरोना ने ऐसा कहर बरपाया कि बागपत में 6
बागपत,जेएनएन: कोरोना ने ऐसा कहर बरपाया कि बागपत में 68 बच्चे अनाथ हो गए। इनमें अधिकांश बच्चे इतने गरीब परिवारों से हैं कि उनके लिए अब दो वक्त की रोटी के भी लाले पड़े हैं। अफसोस की बात है कि इनकी मदद करने के लिए कोई आगे नहीं आया। हां! कुछ अधिकारियों व कर्मियों ने अपने एक दिन के वेतन से पांच लाख रुपये देकर बेसहारा बच्चों की मदद करने का सराहनीय काम किया। ..फिर आप क्यों पीछे हैं नेक काम में? आइए आप भी निभाइए बेबस मासूमों की मदद कर इंसानियत का फर्ज..।
कोरोना की दूसरी लहर ने जैसे ही कहर बरपाया और एक के बाद एक मौत होने लगी वैसे ही करीब दर्जन सरकारी विभागों के अधिकारियों व कर्मियों ने आपस में एक-एक दिन का वेतन के बराबर रुपये जुटाकर करीब पांच लाख रुपये प्रशासन को दिए। प्रशासन ने 44 बच्चों में प्रत्येक की 11 हजार रुपये की एफडी करा दी है। सारथी वेलफेयर फाउंडेशन ने भी बच्चों को 155 जोड़ी कपड़े दिए हैं, लेकिन किसी और ने ऐसी कोई मदद नहीं, जिससे बच्चों को बड़ा सहारा मिलता।
यूं नेता-अभिनेता, जनप्रतिनिधि, कारोबारी यानि समाज में संपन्न लोग यदि मदद करने की ठान लें, तो बेसहारा बच्चों के जीवन की डगर आसान होते देर नहीं लगेगी। एक बार किसी बच्चे की मदद करके तो देखिए.. फिर देखना कितना सुकून मिलेगा।
जिला प्रोबेशन अधिकारी तूलिका शर्मा
ने कहा कि कोरोना में माता या पिता में किसी एक या दोनों को खो चुके बच्चों को सरकारी मदद के सिवा कहीं से मदद नहीं मिली।
लौट आओ पापा..
जागरण संवाददाता, बागपत: अधिकांश मासूम उस मंजर को नहीं भुला पा रहे, जिसमें उनके अभिभावकों का कोरोना ने दम घोट दिया। महीनों बाद भी इन बच्चों के चेहरों पर पापा को खोने का गम साफ देखा जा सकता है।
बड़ौत के एक गांव की विधवा अपने चार और सात साल के बेटों की ओर इशारा कर बताती है कि 10 मई को पति की कोरोना से मौत हो गई। पति गैस सिलेंडरों की घर-घर सप्लाई कर आठ हजार रुपये माह कमाते थे, लेकिन उनके निधन के बाद छोटा बेटा अचानक कहने लगता है कि पापा लौट आओ..। बेटे को दूसरी बातों में उलझाकर सामान्य करती हूं।
बड़ौत शहर की 11 वर्षीय बालिका बताती है कि उसकी मम्मी हाउस वाइफ और पापा शिक्षामित्र थे, लेकिन पापा की मौत के बाद हम तीन भाई-बहन में यह चिता रहती है कि अब हमारे स्कूल की फीस कौन चुकाएगा। अमीनगर सराय की तीन छोटी बच्चियों ने कहा कि पापा की मौत के बाद हमें न रोटी अच्छी लगती है और न मन लगता है।
बागपत की एक विधवा बोलीं कि पति प्राइवेट नौकरी करते थे, पर उनकी मौत के बाद समझ में नहीं आ रहा है कि तीन बच्चों का पालन पोषण कैसे करेंगी। कहीं से कोई मदद नहीं मिली, लेकिन अब बाल सेवा योजना से बच्चों की चार-चार हजार रुपये पेंशन मिलने से कुछ राह आसान होती दिखी है। मुख्यमंत्री योगी जी के लिए दिल से दुआ निकलती है। सरकार मदद न करती तो रोटी के भी लाले पड़ जाते।