किसान को उजाड़नी पड़ी रजनीगंधा की फसल
गन्ने की फसल छोड़ टीकरी के एक किसान ने रजनी गंधा की खेती शुरू की।
बागपत, जेएनएन। गन्ने की फसल छोड़ टीकरी के एक किसान ने रजनी गंधा की खेती शुरू की, लेकिन कोरोना काल में लाकडाउन ने किसान को रजनी गंधा की फसल उजाड़ने पर मजबूर कर दिया। 30 बीघा फसल की जगह अब केवल डेढ़ बीघा फसल बची है।
टीकरी कस्बे में रजनीगंधा की खेती कर रहे विकास कुमार ने बताया कि उसने गन्ने की फसल छोड़ रजनी गंधा की खेती शुरू की थी। फसल से आमदनी भी ठीक हो रही थी, लेकिन कोरोना महामारी में लाकडाउन से दिल्ली में फूलों की मंडी बंद हो गई, जिसके कारण वह रजनीगंधा के फूलों को दिल्ली नहीं ले जा सका। लिहाजा लाखों रुपए की फसल को उजाड़ना पड़ा। अब केवल डेढ़ बीघा फसल रजनीगंधा की बची है। रजनी गंधा की फसल में अच्छी आमदनी है। एक बीघा भूमि में लगभग 10 हजार बल्ब लगते हैं, एक बल्ब की कीमत एक रुपया है। पेड़ तैयार होने तक लगभग प्रति बीघा 15 हजार का खर्च आ जाता है। वर्तमान में दिल्ली की फूल मंडी में फूलों वाली एक डंडी की कीमत 10 से 15 रुपया तक है। यह फसल एक बार बुआई कर तीन साल तक होती है। प्रति बीघा एक लाख रुपए सालाना की बचत आ जाती है। मुआवजे को लेकर सांसद से मिले लोग
दिल्ली-देहरादून इकोनामी कोरिडोर चौगामा क्षेत्र से होकर निकलेगा। शुक्रवार को गांगनौली गांव के धर्मवीर, आजाद, राजपाल सिंह, उपेंद्र, अनुप्रताप, करतार सिंह आदि लोग सांसद डाक्टर सत्यपाल सिंह से उनके दिल्ली आवास पर मिले।
लोगों ने सांसद को बताया कि उनके गांव से कोरिडोर प्रस्तावित है। गांगनौली गांव की भूमि का भी अधिग्रहण होना है, जबकि कुछ भूमि ऐसी है जो आबादी से सटी हुई है और आबादी में ही दर्ज है, लेकिन उसे आबादी की जगह कृषि भूमि में दर्शाया जा रहा है। उस भूमि को सामान्य भूमि में इसलिए दर्शाया जा रहा है ताकि किसानों को कम मुआवजा दिया जा सके। कोरिडोर के लिए निशानदेही में भी काफी अंतर किया है। यदि किसान संबंधित अधिकारी के पास इसकी जानकारी कर समाधान की मांग करते हैं, तो उनके साथ अभद्र व्यवहार किया जाता है जबकि किसान मांग कर रहे है कि सर्किल रेट को नियमानुसार बदलवाकर तब रेट का निर्धारण किया जाए। सांसद ने उन्हें भरोसा दिलाया है कि किसी भी किसान के साथ कोई भेदभाव नहीं करने दिया जाएगा।