अभिभावकों से बच्चों तक पहुंच जाती है थैलेसीमिया बीमारी

बच्चों को अनुवांशिक तौर पर मिलने वाला रक्तरक्त थैलेसीमिया है जो गंभीर बीमारी है। माता-पिता से ही बच्चों तक पहुंचता है। रोग से पीड़ित बच्चे ज्यादा दिनों तक जीवित नहीं रह सकते है।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 07 May 2020 09:55 PM (IST) Updated:Thu, 07 May 2020 09:55 PM (IST)
अभिभावकों से बच्चों तक पहुंच जाती है थैलेसीमिया बीमारी
अभिभावकों से बच्चों तक पहुंच जाती है थैलेसीमिया बीमारी

बागपत, जेएनएन। थैलेसीमिया रोग अभिभावकों से ही बच्चों तक पहुंचता है। रोग से पीड़ित बच्चे ज्यादा दिनों तक जीवित नहीं रह सकते है। गर्भ में पल रहे बच्चे की जांच से ही इसका पता लगाया जा सकता है। शादी से पहले मां-पिता को भी अपनी जांच करानी चाहिए, जिससे थोड़ी एहतियात बरती जा सकती है, क्योंकि यह बीमारी आनुवांशिक है।

सीएमओ डॉ. आरके टंडन ने बताया कि महिलाओं एवं पुरुषों के शरीर में क्रोमोजोम की खराबी माइनर थैलेसीमिया होने का कारण बनती है। यदि दोनों ही मानइर थैलेसीमिया से पीड़ित होते हैं तो शिशु को मेजर थैलेसीमिया होने की संभावना बढ़ जाती है। जन्म के तीन महीने बाद ही बच्चे के शरीर में खून बनना बंद हो जाता है और उसे बार-बार खून चढ़ाने की जरूरत पड़ती है। सामान्य रूप से शरीर में लाल रक्त कणों की उम्र करीब 120 दिनों की होती है, लेकिन थैलेसीमिया के कारण लाल रक्त कणों की उम्र कम हो जाती है। इस कारण बार-बार शिशु को बाहरी रक्त चढ़ाना पड़ता है। ऐसी स्थिति में अधिकांश माता-पिता बच्चे का इलाज कराने में अक्षम हो जाते हैं। जिससे 12 से 15 वर्ष की आयु में बच्चों की मृत्यु हो जाती है। यदि सही से इलाज कराया भी गया तो भी 25 वर्ष व इससे कुछ अधिक वर्ष तक ही रोगी जीवित रह सकता है। जिले में इसकी जांच की व्यवस्था नहीं है, लेकिन जागरूकता और सतर्कता बेहद जरूरी है। इस तरह रोका जा सकता है थैलेसीमिया

--थैलेसीमिया एक गंभीर बीमारी है और इससे केवल दो तरीके से रोका जा सकता है। एक तो शादी से पहले वर-वधु के रक्त की जांच हो। यदि जांच में दोनों के रक्त में माइनर थैलेसीमिया पाया जाए तो बच्चे को मेजर थैलेसीमिया होने की पूरी संभावना बन जाती है। ऐसी स्थिति में मां के 10 सप्ताह तक गर्भवती होने पर पल रहे शिशु की जांच होनी चाहिए। इससे गर्भ में पल रहे बच्चे में थैलेसीमिया की बीमारी का पता लगाया जा सकता है। दूसरा दूसरा उपाय यह कि यदि माता-पिता को पता चले कि शिशु थैलेसीमिया से पीड़ित है तो बोन मेरो ट्रांसप्लांट पद्धति से शिशु के जीवन को सुरक्षित किया जा सकता है। यह होते हैं लक्षण

-शिशु के नाखून और जीभ पीले हो रहे है।

-बच्चे के जबड़े और गाल असामान्य हो गए हैं।

-शिशु का विकास रुकने लगा है।

-वह अपनी उम्र से काफी छोटा नजर आने लगे।

-चेहरा सूखा हुआ रहे, वजन न बढ़े।

-हमेशा कमजोर और बीमार रहे।

-सांस लेने में तकलीफ हो और पीलिया की शिकायत बढ़ जाती है। थैलेसीमिया क्या है?

--थैलेसीमिया एक ऑटोसोमल रिसेसिव रक्त विकार है, जो माता-पिता से बच्चों को जीन के माध्यम से विरासत में मिलता है। यह एक रक्त विकार है, जो लाल रक्त कोशिकाओं के कमजोर होने और विनाश का कारण बनता है। शरीर में हीमोग्लोबिन के गठन को प्रभावित करता है और हल्के या गंभीर एनीमिया का कारण बनता है। यह हड्डियों में विकृति, हृदय संबंधी बीमारियों, दिल की धड़कन, बढ़े हुए जिगर, पीलिया, बढ़े हुए प्लीहा, गाल या माथे की बढ़ी हुई हड्डियों, विलंबित यौवन और आदि जैसी जटिलताओं का कारण बनता है।

chat bot
आपका साथी