गांवों की सरकार..जज्बा पूरा, सिस्टम अधूरा

नवनिर्वाचित प्रधानों में गांवों का विकास कराने का जज्बा आसमान पर है लेकिन सरकारी सिस्टम काम में रोड़ा अटकाने में कसर नहीं छोड़ रहा है।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 04 Aug 2021 07:28 PM (IST) Updated:Wed, 04 Aug 2021 07:28 PM (IST)
गांवों की सरकार..जज्बा पूरा, सिस्टम अधूरा
गांवों की सरकार..जज्बा पूरा, सिस्टम अधूरा

बागपत, जेएनएन। नवनिर्वाचित प्रधानों में गांवों का विकास कराने का जज्बा आसमान पर है, लेकिन सरकारी तंत्र रोड़ा अटकाने में कसर नहीं छोड़ रहा है। दो दर्जन गांवों में विकास के नाम पर फूटी कौड़ी तक खर्च नहीं हुई। इसके लिए प्रधान नहीं, सरकारी सिस्टम जिम्मेदार है, क्योंकि कहीं पंचायत सचिव के दर्शन नहीं होते तो कहीं कार्य योजना मंजूरी होने का इंतजार है।

27 मई को शपथ लेने के बाद ग्राम प्रधानों ने ग्राम पंचायतों की पहली बैठक में अपना इरादा साफ कर दिया था कि गांव का विकास कराने में वे कसर नहीं रखेंगे। अब सरकारी तंत्र से पाला पड़ने पर प्रधानों की समझ में आने लगा है कि राह आसान नहीं। पहले प्रधानों के डिजिटल सिग्नेचर बनने में विलंब हुआ, फिर पंचायत सचिवों की कलस्टर पर नियुक्ति करने का पेंच फंस गया।

खेकड़ा, बागपत व बिनौली ब्लाकों में पंचायत सचिवों की क्लस्टर पर नियुक्ति तीन अगस्त को हुई। बाकी तीन पिलाना, बड़ौत व छपरौली ब्लाकों में अभी क्लस्टरों पर पंचायत सचिवों की नियुक्ति होना बाकी। इसके बावजूद प्रधान अपने पास से गांवों की सफाई, कोरोना को हराने के लिए सैनिटाइज कराने, मच्छरों के खात्मे के लिए फागिग कराने का कार्य करने में कसर नहीं छोड़ रहे हैं।

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9.14 करोड़ रुपये खर्च हुए

-244 ग्राम पंचायतों में प्रधानों की शपथ लेने के वक्त करीब 21 करोड़ रुपये का बजट था, जिसमें 9.14 करोड़ रुपये खर्च हुआ।

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23 गांवों में कोई धनराशि

खर्च नहीं की गई

दो दर्जन गांवों में प्रधानों के शपथ लेने के बाद ग्राम पंचायतों के खाते से एक फूटी कौड़ी खर्च नहीं हुई। फिर कैसे विकास होगा।

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प्रधानों की सुनिए..

शेरपुर गांव के प्रधान विकास कुमार कहते हैं कि पंचायत सचिव एक माह में केवल एक बार गांव में आए। वह बिना पंचायत सचिव कैसे काम कर सकते हैं। टांडा गांव के प्रधान नवाजिश खान कहते हैं कि पांच माह तक ग्राम पंचायत में प्रशासक नियुक्त रहा। इस दौरान लाखों रुपये की अनियमितता हुई। शिकायत करने पर अधिकारियों ने कार्रवाई नहीं की। बसा टीकरी की प्रधान अनिता ने कहा कि हमें बाद में शपथ मिली थी। काफी बाद में हमारा डिजिटल सिग्नेचर बना, जिससे कोई खर्च नहीं कर पाई। अपने पास से गांव में सफाई और फागिग कराने का कार्य कराया।

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छोड़ी घूंघट की आड़

-सिसाना की शालू पहले घूंघट करती थीं लेकिन प्रधान बनने के बाद वह घूंघट की आड़ से बाहर निकलकर गांव का विकास कराने में जुट गई हैं। दो माह में 30 हैंडपंप रिबोर कराने और गोशाला तक जाने वाला रास्ता बनवाने का दावा किया। ग्वालीखेड़ा की प्रधान सोनिया शर्मा भी प्रधान बनने के बाद घूंघट के बाहर निकल गांव का विकास में जुटी है। शानदार पंचायत घर बनवाया। कोरोना हराने को गांव को सैनिटाइज कराया।

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दो माह में गांवों में हुआ खर्च

ब्लाक करोड रु.

बागपत 1.99

बड़ौत 2.31

बिनौली 1.35

छपरौली 1.29

खेकड़ा 0.69

पिलाना 1.50

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