खून से लाल हो गया था क्रांति गांव बसौद का तालाब

महाभारत का साक्षी रहा बागपत आजादी की लड़ाई में भी अग्रणी रहा।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 04 Aug 2021 10:39 PM (IST) Updated:Wed, 04 Aug 2021 10:39 PM (IST)
खून से लाल हो गया था  क्रांति गांव बसौद का तालाब
खून से लाल हो गया था क्रांति गांव बसौद का तालाब

बागपत, जेएनएन। महाभारत का साक्षी रहा बागपत आजादी की लड़ाई में भी अग्रणी रहा। 1857 का प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन हो या फिर आजादी के दूसरे आंदोलन की बात हो, इनमें बागपत देशहित में अपनी महती भूमिका निभाने में पीछे नहीं रहा। यहां का चप्पा-चप्पा शौर्य और बलिदान की गौरव गाथाओं को अपने दामन में संजोए है। स्वतंत्रता दिवस समारोह की तैयारी के बीच हम उन स्थलों की याद ताजा करेंगे, जो स्वाधीनता संग्राम के मूक गवाह हैं। पेश है आज पहली कड़ी..।

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मेरठ में 10 मई 1857 को अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल बजने पर बागपत के बिजरौल गांव निवासी क्रांतिकारी बाबा शाहमल ने बसौद गांव की जामा मस्जिद को क्रांति का कार्यालय व रसद रखने को चुना था, लेकिन अंग्रेजों को इसकी भनक लग गई थी। अंग्रेजों ने मेजर विलियम के नेतृत्व में पलटन के साथ 17 जुलाई 1857 को बसौद की जामा मस्जिद पर हमला कर दिया। अंग्रेजों व बाबा शाहमल के योद्धा ग्रामीणों में 18 घंटे जंग हुई।

बसौद निवासी तथा युवा चेतना मंच के संस्थापक मास्टर सत्तार अहमद ने बताया कि अंग्रेजों से लड़ते हुए बसौद के कुछ लोग तालाब में कूद गए थे। तब अंग्रेजों के अंधाधुंध गोली चलाने से तालाब खून से लाल हो गया था। 15 क्रांतिकारियों को जिदा पकड़कर अंग्रेजों ने बरगद के पेड़ पर फांसी लगा दी। कुल 180 ग्रामीण शहीद हुए।

हिस्ट्री एंड कल्चर एसोसिएशन मेरठ के संस्थापकों डा. अमित पाठक, डा. केके शर्मा, अमित राय जैन के द्वारा 2016 में गांव को प्रमाण पत्र देकर क्रांति ग्राम का दर्जा दिया गया। यहां हर साल 17 जुलाई को शहादत दिवस मनाया जाता है।

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