फिर घाटे का सौदा न बन जाए रटौल का आम

देश में लगातार बढ़ रहे कोरोना के मामलों का डर एक बार फिर रटौल के आम ठेकेदारों को डर सताने लगा है।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 11 May 2021 10:31 PM (IST) Updated:Tue, 11 May 2021 10:31 PM (IST)
फिर घाटे का सौदा न बन जाए रटौल का आम
फिर घाटे का सौदा न बन जाए रटौल का आम

बागपत, जेएनएन। देश में लगातार बढ़ रहे कोरोना के मामलों का डर एक बार फिर रटौल के आम उत्पादकों संग ठेकेदारों को सताने लगा है। कहीं इस बार भी साप्ताहिक लाकडाउन के कारण आम के उचित दाम न मिलने से एक बार फिर फसल घाटे का सौदा न साबित हो जाए।

वैसे तो रटौल गांव में दशहरी, चौसा, लंगड़ा, मकसूस, तोता परी, मुम्बई आदि सैकड़ों से ज्यादा प्रजाति के आमों के बाग हैं, लेकिन यहां का रटौल प्रजाति का आम दुनिया में प्रसिद्ध है। इस प्रजाति के आम की मांग विदेश में भी है। रटौल में आम महोत्सव होता था तो देश व विदेश से लोग आम का स्वाद लेने गांव पहुंचते थे। देश में लगातार कोरोना संक्रमित बढ़ने और लगातार बढ़ाए जा रहे लाकडाउन से मशहूर रटौल के आम उत्पादक व ठेकेदारों के चेहरे पर चिता की लकीरें न•ार आ रही हैं। अंदेशा है कि कहीं पिछले वर्ष की तरह कोरोना संक्रमण रोकने को लगे लाकडाउन से इस बार भी कारोबार प्रभावित न हो जाए। पिछले वर्ष भी उन्हें आम की फसल के उचित दाम नहीं मिले थे। यातायात की सुविधा न होने के कारण जहां आम दिल्ली, गा•िायाबाद, मेरठ आदि शहरों में आम नहीं पहुंचने से उचित दाम नहीं मिल पाए थे।

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पिछले साल भी हुआ था नुकसान

-- आम उत्पादक डा. मैराजुद्दीन बताते हैं कि पिछले साल लाकडाउन के कारण यहां का आम बड़े शहर व गैर प्रदेशों में नहीं पहुंच पाया था। इससे उन्हें काफी नुकसान उठाना पड़ा।

बागान मालिक जुनैद फरीदी का कहना है कि यहां का रटौल प्रजाति के आम की मांग विदेश में भी है। उन्हें डर है यदि हालात नहीं सुधरे तो आम की फसल से काफी नुकसान उठाना पड़ जाएगा। उत्पादक बाबर अली का कहना कि निरंतर कोरोना बढ़ने से लगता है कि हालात नहीं सुधरेंगे। हबीब खान का कहना है कि इस बार पिछले वर्ष के मुकाबले आम की फसल कम है। यदि यही स्थिति रही तो बंदी के कारण ट्रांसपोर्ट नहीं मिलने से आम मंडियों तक नहीं पहुंचेगा और भारी नुकसान होगा।

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52 से पांच हजार बीघा पर

पहुंचा बाग का रकबा

--रटौल गांव में कभी 52 हजार बीघा में आम की फसल होती थी, लेकिन फल पट्टी क्षेत्र होने के बाद भी सरकार से सुविधा नहीं मिल पाने के कारण मालिकों ने अपने बाग कटवा दिए। अब आम बाग का रकबा घटकर पांच हजार बीघा के आसपास रह गया है।

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