वह करती रही नौकरी, विभाग ने कागजों में मार डाला

जगत ब्लॉक के मझिया गांव में गायत्री देवी वर्ष 1997 से आंगनबाड़ी कार्यकर्ता हैं। उसी समय बाल विकास विभाग में उनका नाम दर्ज हुआ मानदेय आता रहा। अचानक उन्हें मृत दर्शाकर मानदेय रोक दिया गया। आठ महीने यही स्थिति रही। लापरवाह बाबुओं के सामने उन्हें अपनी जीवित होने का प्रमाण देना पड़ा।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 21 Jan 2021 02:06 AM (IST) Updated:Thu, 21 Jan 2021 02:06 AM (IST)
वह करती रही नौकरी, विभाग ने कागजों में मार डाला
वह करती रही नौकरी, विभाग ने कागजों में मार डाला

जेएनएन, बदायूं : जगत ब्लॉक के मझिया गांव में गायत्री देवी वर्ष 1997 से आंगनबाड़ी कार्यकर्ता हैं। उसी समय बाल विकास विभाग में उनका नाम दर्ज हुआ मानदेय आता रहा। अचानक उन्हें मृत दर्शाकर मानदेय रोक दिया गया। आठ महीने यही स्थिति रही। लापरवाह बाबुओं के सामने उन्हें अपनी जीवित होने का प्रमाण देना पड़ा। अब वह आठ महीने का बाकी मानदेय पानी के लिए कार्यालयों के चक्कर लगा रही हैं।

गायत्री देवी बताती हैं कि जुलाई 2016 से फरवरी 2017 तक मानदेय नहीं आया था। शुरूआती दो-तीन महीने तक लगा कि बजट की वजह से रोड़ा लग गया होगा। इसके बाद दो महीने विभाग से पत्राचार में निकल गए, मगर किसी ने कोई जवाब नहीं दिया। कार्यालयों के चक्कर लगाने शुरू कर दिए, तब सात महीने बाद बताया कि आनलाइन फीडिंग करने वाले कर्मचारी ने उनके नाम के आगे मृत लिख दिया है। तत्कालीन जिला कार्यक्रम अधिकारी के निर्देश पर उनका ब्योरा दुरुस्त कर दिया गया। मार्च 2017 से दोबारा मानदेय मिलने लगा मगर, पिछले आठ महीने के मानदेय के बाबत अफसर चुप हो गए।

रुका हुआ मानदेय जारी कराने के लिए वह अधिकारियों के चक्कर लगा रही हैं। जिला अधिकारी कुमार प्रशांत, जिला कार्यक्रम अधिकारी अदीश मिश्रा से मिल चुकी हैं। नगर विकास राज्यमंत्री महेश चंद्र गुप्ता को ज्ञापन दे चुकी हैं। कहती हैं कि हर महीने साढ़े पांच हजार रुपये मानदेय मिलता है, इसी से परिवार चलाते हैं।

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अब आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं का मानदेय शासन से सीधे उनके खाते में आता है। हो सकता है कि उस अवधि में उनका आधार नंबर और बैंक का खाता नंबर अपडेट न हुआ हो, जिससे मानदेय नहीं मिला हो। इसकी जानकारी करके समस्या का निदान कराएंगे।

- अदीश मिश्रा, जिला कार्यक्रम अधिकारी

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