गन्ने की छिलाई ने घटाई एनआरसी में बच्चों की संख्या

जिला अस्पताल में बने एनआरसी में बच्चों की संख्या इन दिनों काफी कम हो गई है। वजह है कि देहात इलाकों में गन्ने की छिलाई चल रही है।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 17 Nov 2019 11:48 PM (IST) Updated:Mon, 18 Nov 2019 06:04 AM (IST)
गन्ने की छिलाई ने घटाई एनआरसी में बच्चों की संख्या
गन्ने की छिलाई ने घटाई एनआरसी में बच्चों की संख्या

जागरण संवाददाता, बदायूं : जिला अस्पताल में बने एनआरसी में बच्चों की संख्या इन दिनों काफी कम हो गई है। वजह है कि देहात इलाकों में गन्ने की छिलाई चल रही है। खासकर पिछले डेढ़ महीने से यह आंकड़ा 20 का आंकड़ा भी पार नहीं कर सका है। क्योंकि इससे पहले धान की कटाई का भी सीजन शुरू हो गया था। हालांकि माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में पुन: एनआरसी में कुपोषित बच्चों की संख्या में इजाफा होगा।

बच्चों को कुपोषण से बचाते हुए उनकी लंबाई और वजन बढ़ाने के लिए जिला अस्पताल में कुपोषण पुनर्वास केंद्र खोला गया है। इसकी क्षमता भले ही 10 बेड की है लेकिन स्थान काफी होने के कारण यहां दो वार्डों पर 20 और इससे अधिक बच्चे भी भर्ती कर लिए जाते हैं। यहां 14 दिन तक बच्चों को रखकर उनकी देखभाल समेत पौष्टिक आहार भी दिया जाता है। जबकि इसके बाद दो महीने तक हर 15वें दिन बच्चों को बुलाकर देखा जाता है कि कहीं उन्हें कुपोषण दोबारा तो नहीं जकड़ रहा है। बच्चों की मां के ठहरने की भी यहां व्यवस्था रहती है और इस अवधि में उन्हें सिखाया जाता है कि बच्चे को कैसे खिलाया-पिलाया जाना है। इधर, पिछले डेढ़ महीने से इसमें बच्चों की संख्या में अचानक गिरावट आ गई है। माना जा रहा है कि फसलों की कटाई के कारण लोग व्यस्त हैं और बच्चों को यहां नहीं ला पा रहे हैं।

यह होता है मैन्यू

सोमवार को यहां नमकीन खिचड़ी बच्चों को दी जाती है। जबकि मंगलवार को मीठा दलिया, बुधवार को मूंग दाल दलिया, गुरुवार सूजी का हलवा, शुक्रवार को नमकीन खिचड़ी, शनिवार को खीर और रविवार को नमकीन दलिया दिया जाता है। इसके अलावा दूध में पौष्टिक दवाएं और पाउडर बच्चों को मिलाकर पिलाए जाते हैं। ताकि उनके वजन में बढ़ोत्तरी हो। बीमार बच्चों का भी यहां बालरोग विशेषज्ञ की देखरेख में उपचार चलने के साथ मैन्यू के आधार पर भोजन दिया जाता है। परिजनों के खाते में भर्ती की अवधि में 50 रुपये रोजाना डाले जाते हैं। जबकि 15 दिन बाद बुलाने पर सौ रुपये बतौर किराए के दिए जाते हैं। यहां एक से 59 महीने की उम्र के बच्चों को ही भर्ती किया जाता है।

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