एक घंटे तक महात्मा को खामोशी से सुनता रहा था गांधी मैदान

अपने शहर में ये जो गांधी मैदान है। गवाह है उस महात्मा की मौजूदगी का।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 26 Sep 2018 12:37 AM (IST) Updated:Wed, 26 Sep 2018 12:37 AM (IST)
एक घंटे तक महात्मा को खामोशी से सुनता रहा था गांधी मैदान
एक घंटे तक महात्मा को खामोशी से सुनता रहा था गांधी मैदान

बदायूं : अपने शहर में ये जो गांधी मैदान है। गवाह है उस महात्मा की मौजूदगी का। उनके शब्दों के ओज का। लोगों पर उन शब्दों के प्रभाव का। याद आ रहा है वह 1929 का साल था। तारीख नौ नवंबर थी। सर्दी की ठिठुरन भरी हवाओं में भी गांधी मैदान एक घंटे तक खामोशी से बापू को सुनता रहा था। मैं भी पिता के साथ कंधे पर बैठकर उस मंजर का एक नन्हा दर्शक बना था। हवा में सर्दी थी, इसलिए पिता शॉल ओढ़ाकर ले गए थे हमें। यह स्मृतियां और शब्द हैं शहर से सटे गांव नगला शर्की निवासी जयलाल सिंह के।

एडीओ पंचायत के पद से सेवानिवृत्त 93 वर्षीय जयलाल सिंह ने स्मृतियों को अपने शब्दों में पिरोया। बताया कि मैं उस समय बहुत छोटा था। गाव के प्राइमरी स्कूल में कक्षा एक में पढ़ता था। गाधी जी के यहां आने का सभी को बेसब्री से इंतजार था। यहा पहुंचने से पहले ही पूरा गाव गाधी मैदान को रवाना हो गया था। हल्की सर्दी थी। भीड़ बहुत थी। पिता जी ने मुझे कंधे पर बैठा लिया था। आंदोलन के लिए बाबू रघुवीर सहाय ने जिले भर में घूमकर चंदा एकत्र किया था। इसी मैदान में वह थैली गांधी जी को सौंपी थी। तमाम लोगों ने सहयोग कर 1930 के आदोलन में अपनी भूमिका निभाई थी। यकीन जानिए एक महीना पहले से पूरे गाव में यही बातें होने लगी थीं कि गाधी जी अब आ रहे हैं।

कार से उतरे तो देखी झलक

भीड़भाड़ के बीच पिताजी काफी आगे पहुंच गए थे, गाधी जी कार से सीधे मैदान में पहुंचे। जब उतरे तो देखा कि धोती-कुर्ता पहने थे। कंधे पर पटका था। बापू ने संबोधन में क्या कहा, यह तो याद नहीं, क्योंकि बहुत छोटा था। लगभग घटेभर तक पूरा मैदान शात रहा और गाधीजी ही बोलते रहे थे। शहर में दो दिन ठहरे थे गांधी जी। जिस कार से वह आए थो वो रेवेरंडटाइटस अमेरिकन मिशनरी की कार थी। बापू के साथ आचार्य कृपलानी, कुमारी मिसस्टेड, प्रभावती देवी और महादेव देसाई भी थे।

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