कलश के अंकुरित जौ को कभी न करें प्रवाहित
- पाठ - अन्नपूर्णा का आशीर्वाद मान दूसरे नवरात्र तक भंडार गृह में रखें - ज्यादा हो जाए तो अ
- पाठ
- अन्नपूर्णा का आशीर्वाद मान दूसरे नवरात्र तक भंडार गृह में रखें
- ज्यादा हो जाए तो अपने लोगों को प्रसाद के रूप में प्रदान करें जागरण संवाददाता, आजमगढ़ : वर्ष में चार नवरात्र आते हैं, लेकिन उसमें चैत्र और शारदीय नवरात्र महत्वपूर्ण होता है। दोनों ही नवरात्र में दुर्गा सप्तशती का पाठ होता है और कलश की स्थापना की जाती है।कलश को गोबर से गोंठकर जौ लगाया जाता है।आमतौर पर लोग विजयादशमी के दिन कलश को प्रवाहित कर देते हैं, लेकिन यह कई मायनों में ठीक नहीं है।कलश को प्रवाहित करें, लेकिन उसमें से अंकुरित जौ को निकालकर।कारण कि अगर जौ अंकुरित है तो आपकी उपलब्धि भी प्रवाहित हो जाएगी।
महुजा नेवादा स्थित माता अठरही धाम पर महा अष्टमी के दिन पहुंचे श्रद्धालुओं के बीच यह बातें पुजारी गिरजा शंकर पाठक ने कही।उन्होंने बताया कि वैसे तो कलश में कई सामग्री का प्रयोग किया जाता है, लेकिन उसके बाहरी हिस्से में लगने वाला जौ भविष्य के बारे में संकेत देता है। कलश के गोंठ में लगा जौ अगर अंकुरित होकर जमीन को स्पर्श कर जाए और नीचे मिट्टी की बेदी में लगा जौ अगर अंकुरित होकर कलश को स्पर्श कर जाए तो यह आने वाले समय में परिवार में सुख-समृद्धि का संकेत माना जाता है।कलश के ऊपरी भाग में दीपक नहीं रखना चाहिए, क्योंकि कलश का ऊपरी भाग भगवान विष्णु, मध्य शंकर और नीचे ब्रह्मा का स्थान माना गया है। कोशिश तो यह होनी चाहिए कि अगले नवरात्र तक कलश को घर में ही किसी पवित्र स्थान पर रखा जाए। अगर ऐसा संभव न हो तो कम से कम नारियल को जरूर रखना चाहिए। नारियल अगर उतने समय में अंकुरित हो गया तो यह वृद्धि का द्योतक है।