वेस्ट मैटेरियल में हुनर का रंग भर तिहरा लाभ ले रहीं सुनीता

मत सोच ये कि नारी को आगे बढ़ना न आता है मत सोच ये नारी को दु

By JagranEdited By: Publish:Mon, 11 Oct 2021 05:47 PM (IST) Updated:Mon, 11 Oct 2021 05:47 PM (IST)
वेस्ट मैटेरियल में हुनर का रंग भर तिहरा लाभ ले रहीं सुनीता
वेस्ट मैटेरियल में हुनर का रंग भर तिहरा लाभ ले रहीं सुनीता

जागरण संवाददाता, आजमगढ़: 'मत सोच ये कि नारी को आगे बढ़ना न आता है, मत सोच ये नारी को दु:ख से लड़ना न आता है। नारी ने जब जन्म लिया इस अंधकार के जीवन में, हर मुश्किल से उसको लड़ना और संघर्षों से टकराना आता है'। ये पंक्तियां शहर के रैदोपुर निवासी घरेलू महिला सुनीता ओझा पर फिट बैठती है। खाली समय में वेस्ट मैटेरियल को लिया और उसमें हुनर का रंग भरने लगीं। फिर क्या एक सिद्ध हस्तशिल्पी के रूप में सजावटी सामान बनाने लगीं। इसके बाद तो आसपास और परिचित की महिलाएं इनके हुनर की मुरीद हो गईं। समय निकाल महिलाएं इनसे सीखनें आती हैं। इनके बनाए सजावटी सामान कम पैसों में बिक भी जाते हैं। इससे एक तो इनके खाली समय का सदुपयोग हो जाता है, दूसरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वस्छ भारत, स्वस्थ भारत अभियान में सहभागिता और आमदनी अलग से।

सुनीता को चौका-बर्तन से कभी फुर्सत नहीं रहती थी। पति विश्वंभर ओझा की शहर में इलेक्ट्रिानिक की दुकान थी, लेकिन एक दिन ऐसा आया कि प्रतिष्ठान बंद हो गया। ऐसे में गृहस्थी चलानी मुश्किल हो गई थी। मुश्किल में बीत रहे एक-एक दिन को उस समय तिनके को सहारा मिल गया, जब एक यात्रा के दौरान आगरा की अंजू दिवाकर नाम की महिला से मुलाकात हो गई। अंजू अपने घर में पीओपी, फेवीकोल, पुराने पेपर, पानी और शीतल पेय की बेकार पड़ी बोतल, पीवीसी पाइप पर रंग भर रही थीं। उस पर सजावटी सामान लगाकर, उसे डाइनिग हाल की खूबसूरती के लिए तैयार करती थीं। सुनीता ने उनसे हस्तशिल्प का गुर सीखा और आज खुद घर पर ऐसे सजावटी सामान का निर्माण करती हैं, जिसे लोग उनके घर तक खरीदने पहुंच जाते हैं। इस कार्य में उनका हाथ उनके स्वजन भी बंटाते हैं। प्रति माह लगभग चार से पांच हजार रुपये की आमदनी हो जाती है।

सजावटी सामानों को बनाने में वेस्ट मैटेरियल का उपयोग काफी सस्ता होता है।

''सजावटी सामान बनाने में वेस्ट मैटेरियल का उपयोग काफी सस्ता होता है। बहुतायत तो घर पर ही मिल जाते हैं, नहीं तो अगल-बगल के घरों से उपलब्ध हो जाता है। कचरा से मुक्ति के साथ आमदनी भी हो जाती है। खाली समय का उपयोग अलग से हो जाता है।

-सुनीता ओझा, हस्तशिल्पी।

chat bot
आपका साथी