गेहूं की बोआई का तरीका बदलकर किसानों ने बचाए 15.75 करोड़
राकेश श्रीवास्तव आजमगढ़ आधुनिक तकनीकी अन्नदाताओं के लिए अवसर के दरवाजे खोल रही है।
राकेश श्रीवास्तव, आजमगढ़ : आधुनिक तकनीकी अन्नदाताओं के लिए अवसर के दरवाजे खोल रही है। आजमगढ़ में किसान फसल अवशेष प्रबंधन तकनीकी का इस्तेमाल करके अवसर का लाभ उठा रहे हैं। 64916 हेक्टेयर में गेहूं की बोआई करके 15.74 करोड़ रुपये बचाए हैं।
यह आंकड़ा 50 करोड़ के पार पहुंच सकता था, बशर्ते 147900 हेक्टेयर में खेती के लिए अन्नदाताओं ने नई तकनीक का इस्तेमाल किया होता। हालांकि, खेती का रकबा बीते साल के 7000 हेक्टेयर से बढ़कर 64916 होना किसानों के आधुनिक सोच की ओर कदमताल करने की बात को जरूर दर्शाता है।
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यूं अन्नदाताओं ने बचाए करोड़ों
गेहूं की पैदावार हुई नहीं और किसानों ने करोड़ों रुपये बचा लिए। यह बात चौंकाने वाली, लेकिन है इसमें 16 आना सच। किसान गेहूं की बोआई, सिचाई, गुणवत्ता बढ़ाने के लिए विभिन्न उपायों में जेब ढीली करता है। हैप्पी सीडर, सुपर सीडर, मल्चर एफबी सीडड्रिल की नई तकनीकि उस खर्च को आधा से भी कम कर देती है। मसलन, दो बार की सिचाई, जोताई का खर्च के साथ पानी की भी बचत होती है। फसल की गुणवत्ता बढ़ने से बाजार में ऊंचा मूल्य मिलता है। मसलन खेती में लागत घटने के साथ फसल की कीमत अच्छी मिलने से आय दोगुनी होने की संभावना होती है।
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फसल अवशेष प्रबंधन क्या है?
फसल अवशेष प्रबंधन (सीआरएम) यानी कि धान की कटाई के बाद उसके अवशेष को जलाने के बजाए सुपर हैप्पी सीडर मशीन के जरिए गेहूं की बोआई करना होता है। यह मशीन धान के अवशेष को छोटे-छोटे टुकड़ों में करके खेत की जोताई व साथ में बोआई करती है। हैप्पी सीडर मशीन धान की फसल के अवशेषों के साथ गेहूं की बोआई कर देती है। खेत की ज्यादा गहराई तक जोताई नहीं की जाती है।
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आंकड़ों के आइने में अधुनिक खेती और बचत
तकनीकी ---------- प्रति हेक्टेयर बचत----हेक्टेयर में खेती---कुल बचत
हैप्पी सीडर---------------------------- 3000 रुपये ----15700----47100000 रुपये
सुपर हैप्पी सीडर ---------------------2300 रुपये ----47300----108790000रुपये
मल्चर हैप्पी सीडर--------------------1200रुपये-----1156------924800रुपये
आरएमबी प्ल्ग एफबी सीडड्रिल-----800-------------760--------608000रुपये
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वर्जन ..
वर्जन--28-सी.।
किसानों को आधुनिक खेती को जागरूक करने संग तकनीक की जानकारी देने से उत्साहित किसान 7000 के बजाए अबकी 64916 हेक्टेयर में खेती किए हैं। किसानी के लागत का अलग-अलग आंकड़ा तैयार हुआ जो बचत 15 करोड़ के पार पहुंची है।
-डा.कृष्ण मोहन सिंह, प्रभारी कृषि विज्ञान केंद्र, कोटवा।