इलेक्ट्रानिक युग में भी किताबों का नहीं दूसरा कोई विकल्प

-22वां पुस्तक मेला -अपनी मातृभाषा के माध्यम से बेहतरी से कर सकते हैं हम अपनी पहचानडा.

By JagranEdited By: Publish:Sun, 21 Nov 2021 06:14 PM (IST) Updated:Sun, 21 Nov 2021 06:14 PM (IST)
इलेक्ट्रानिक युग में भी किताबों का नहीं दूसरा कोई विकल्प
इलेक्ट्रानिक युग में भी किताबों का नहीं दूसरा कोई विकल्प

-22वां पुस्तक मेला ::

-अपनी मातृभाषा के माध्यम से बेहतरी से कर सकते हैं हम अपनी पहचान:डा. शंभूनाथ

-किताबों से कभी नहीं टूट सकता है मनुष्य का रिश्ता: मौलाना उमेर सिद्दीक

-मां की तरह भाषा मानवता को देती है संस्कार:डा. अनिल राय

जागरण संवाददाता, आजमगढ़: संस्कृृति विभाग उत्तर प्रदेश एवं वन विभाग के सहयोग से जिला प्रशासन के सानिध्य में नेशनल

बुक ट्रस्ट के रचनात्मक सहयोग से शुरूआत समिति के माध्यम से शिब्ली नेशनल इंटर कालेज में 22वां आजमगढ़ पुस्तक मेला चल रहा है। पांचवें दिन रविवार को साइबर युग में पुस्तक संस्कृति विषय पर विमर्श किया गया।

कलकत्ता से प्रसिद्ध हिदी लेखक भारतीय भाषा परिषद के निदेशक डा. शंभूनाथ ने वर्चुचल माध्यम से विद्यार्थियों और शिक्षकों को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि इलेक्ट्रानिक युग में भी किताबों का दूसरा कोई विकल्प नहीं है। उन्होंने कहा कि हम अपनी पहचान अपनी मातृभाषा के माध्यम से जितनी बेहतरी से कर सकते हैं, उतनी और भाषा में नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि सूचना क्रांति के दौर में ज्ञान के भूमंडलीकरण के लिए हमें अपनी मातृभाषा को माध्यम बनाना होगा। हमारे लेखक समाज में पुल की तरह हैं। किताबें बचेंगी तो इंसानियत के ये पुल भी बचेगें। कहाकि आज समकालीन समय में सबसे बड़ी जरूरत है पढ़ने की संस्कृति को विकसित करना, नहीं ंतो साइबर युग में हमारी आने वाली पीढ़ी गुमराह हो जाएगी। उन्होंने कहा कि हम तकनीकी की उपेक्षा नहीं कर रहे हैं लेकिन किताबों का कोई विकल्प नहीं। दारुल मुसन्निफीन के सीनियर फेलो मौलाना उमेर सिद्दीक ने कहा कि किताबें सच्ची हमसफर हैं। जब हम अपनी जिदगी में आगे बढ़ते हैं तब हमें किताबों के मायनों क्या होते हैं, इसका ज्ञान होता है। उन्होंने कहा कि बिना किताब के कोई धर्म नहीं। किताबों से मनुष्य का रिश्ता तो टूट ही नहीं सकता चाहे, कितनी भी तकनीकी आ जाए। कहा कि जीवन में हमें क्या करना है, ये प्रेरणा किताबों से ही मिलती है। हिदी विभाग गोरखपुर विश्वविद्यालय के विभागाध्यक्ष डा. अनिल राय ने कहा कि भाषा मां की तरह है, जो मानवता को संस्कार देती है। जिस भाषा में अनुसंधान कार्य होता है, वह भाषा वैश्विक हो जाती है। लखनऊ से आए वरिष्ठ पत्रकार राकेश राय ने कहा कि आज पर्यावरण मित्र व्यवहार ही दुनिया को बचाने में सहयोग कर सकता है। संचालन करते हुए संस्कृतिकर्मी राजीव रंजन ने कहा कि किताबें हमेशा सांस्कृतिक पुनर्निमाण की बुनियाद हैं। आमिना ग‌र्ल्स हाईस्कूल करमैनी रौनापार के 300 विद्यार्थियों ने विशेष रूप से भागीदारी निभाई। अध्यक्षता प्रबंधक डा. अब्दूल कवि ने की। शु़रुआत समिति के सचिव रीता राय, शिक्षिका शाहेदा, सफूरा परवीन, तसमीन कौशर, अजीजा, अंशु राय, खिजरा, समरीन ने अपने विचार रखे।

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कवियों ने रचनाओं से किया सराबोर:::

सांध्यकालीन सत्र में कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें विशेष रूप से आशा सिंह, शैलेंद्र मोहन राय 'अटपट', बिजयेंद्र प्रताप श्रीवास्तव, अजय गुप्ता, अजय कुमार पांडेय, रुद्रनाथ चौबे 'रूद्र', राजकुमार आर्शीवाद, आदित्य आजमी, शशांक आनंद ने अपनी अपनी कविताओं से सबको सराबोर कर दिया किया। कवि गोष्ठी की अध्यक्षता शशिभूषण ने की। इतिहास विभाग के प्रोफेसर डा. अलाउद्दीन विशेष रूप से उपस्थिति रहे।

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