अबकी भाइयों की कलाइयों से दूर रहा ड्रैगन
अबकी भाइयों की कलाइयों से दूर रहा ड्रैगन
जागरण संवाददाता, आजमगढ़ : देश की सीमा की सुरक्षा के लिए अगर हमारे सैनिक खड़े होते हैं तो देश की सवा अरब की आबादी अपने मान-सम्मान की हिफाजत के लिए अपने स्तर से तैयार रहती है। अबकी रक्षाबंधन पर भी कुछ ऐसा कर दिखाया हमारे समाज ने। व्यापारियों ने भी चीनी सामान का बहिष्कार किया तो भाइयों की कलाई से दूर हो गया ड्रैगन।
व्यापारियों की मानें तो प्रत्यक्ष रूप से बाजार में पहले भी चाइनीज राखियां नहीं बिकती थीं। चाइना उत्पाद नग, रेशम का प्रयोग राखियों के निर्माण में होता था लेकिन अबकी फरवरी महीने से चीन उत्पादित कोरोना वायरस और उसके बाद चीन के साथ भारत के तनाव को देखते हुए चीन से रॉ मैटीरियल का भी आयात नहीं हो सका।
हां, यह संभव है कि कुछ पहले के रॉ मैटीरियल बाजार में रहे होंगे लेकिन राखी में लगे सामान की पहचान चीनी रूप में करना मुश्किल है। इस बार राखी बाजार पूरी तरह से भारतीय रहा है, इसमें स्थानीय स्तर पर स्वयं सहायता समूह की महिलाओं द्वारा तैयार राखियां भी भाइयों की कलाइयों तक पहुंचीं। आम आदमी भी खरीदारी से पहले यह पूछ रहा था कि हमें कहीं चाइना की राखियां तो नहीं दे रहे हैं। ग्राहकों को पैकेट पर लिखे मेड इन इंडिया दिखाना पढ़ रहा था। फोटो-24-जिले में पौने दो करोड़ का होता है कारोबार
जागरण संवाददाता, आजमगढ़ : 50 लाख की आबादी वाले जिले में लगभग पौने दो करोड़ की राखियों का कारोबार होता है।इसमें थोड़ा बहुत अंतर हो सकता है लेकिन आंकड़ों पर गौर करें तो एक राखी ?5 से लेकर ?100 तक बिकती है। इसका औसत निकाला जाए तो एक राखी की कीमत ?8 रुपये आएगी। 50 लाख की आबादी में 20 फीसद माइनस करके देखें तो बाकी लोग यह त्योहार मनाते हैं। इसमें भी 50 फीसद पुरुष को माइनस कर दिया जाए तो 20 लाख महिलाएं राखी खरीदती हैं। अब इसके हिसाब से औसत निकाला जाए तो मिनिमम करोड़ 60 लाख रुपये आएगा लेकिन हम लोग इसे लगभग पौने दो लाख मानते हैं। ऐसा नहीं है कि राखियों का दाम बाकी सामानों की तरह से हर बार घटता-बढ़ता है, बल्कि आज से नहीं पिछले 10 सालों से यही औसत निकाला जाता रहा है। संतोष इस बात का है कि इस बार प्रत्यक्ष ही, नहीं बल्कि परोक्ष रूप से भी ड्रैगन भाइयों की कलाइयों तक नहीं पहुंच सका। हम व्यवसायी हैं लेकिन उससे पहले भारतीय हैं और चाहेंगे की यही स्थिति हमेशा बनी रहे, ताकि हमारा भारत समृद्ध हो और हमारे कुटीर उद्योग लाभ की ओर अग्रसर हों, क्योंकि इसी में हम सबकी भलाई है। राखी बाजार में पश्चिम बंगाल का कब्जा
आजमगढ़ : राखी बाजार में हमेशा से पश्चिम बंगाल का कब्जा रहा है। ऐसा नहीं कि पूरा बाजार उसके हवाले रहा हो लेकिन 40 फीसद राखियां वहीं से मंगाई जाती हैं। बाकी की 60 फीसद में दिल्ली, मुंबई, गुजरात की राखियां शामिल होती हैं।