बलिहारी बाबू ने समझा उपेक्षित वर्ग का मर्म

- दलितों पिछड़ों और मुस्लिम समाज को एकजुट करने को यूपी में की थी पदयात्रा और साइकिल या˜

By JagranEdited By: Publish:Wed, 28 Apr 2021 07:11 PM (IST) Updated:Wed, 28 Apr 2021 07:11 PM (IST)
बलिहारी बाबू ने समझा उपेक्षित वर्ग का मर्म
बलिहारी बाबू ने समझा उपेक्षित वर्ग का मर्म

- दलितों, पिछड़ों और मुस्लिम समाज को एकजुट करने को यूपी में की थी पदयात्रा और साइकिल यात्रा

-कांशीराम के साथ मिलकर बसपा के आंदोलन में निभाई थी महत्वपूर्ण भूमिका

-बसपा छोड़ कांग्रेस फिर बसपा और वर्तमान में सपा के वरिष्ठ नेताओं में थे सुमार जागरण संवाददाता, आजमगढ़: बसपा संस्थापक कांशीराम के साथ मिलकर बहुजन समाज के आंदोलन में पूर्व राज्यसभा सदस्य बलिहारी बाबू ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। राजनीति के साथ पिछड़े व वंचित समाज के साथ सुख-दुख में हमेशा शामिल होते थे।

वर्ष 1984 से पहले कांशीराम ने बामसेफ और डीएस-4 के माध्यम से दलितों, पिछड़ों और मुस्लिम समाज को एकजुट करने के लिए उत्तर प्रदेश में पदयात्रा और साइकिल यात्रा की। जिसके माध्यम से बलिहारी बाबू समाज के उपेक्षित वर्ग का मर्म समझा। इस समाज के पीड़ित वर्ग के लोगों को अपने साथ जोड़ा। बलिहारी बाबू ने कांशीराम की संघर्ष यात्रा में शामिल होकर काफी संख्या में दलितों, पिछड़ों और मुस्लिम समाज के नेताओं को संगठन से जोड़कर 1992 में सपा-बसपा की गठनबंधन की सरकार में मंत्री तक का ओहदा दिलवाया। इन्हें बसपा से दो बार राज्यसभा जाने का अवसर मिला। 2006 में कांशीराम के निधन के बाद 2007 में उन्हें पुन: राज्यसभा में जाने का मौका मिला। लेकिन पद की लालसा छोड़ अपने स्थान पर दूसरे को राज्यसभा भेजा। कांशीराम के निधन के बाद बसपा के वफादार नेताओं में शामिल बलिहारी बाबू को पार्टी से निकाल दिया गया। जिसके बाद वे कांग्रेस में शामिल हो गए। 2014 में कांग्रेस ने उन्हें लालगंज सुरक्षित संसदीय क्षेत्र से प्रत्याशी बनाया था। हालांकि इन्हें हार का सामना करना पड़ा था। लोकसभा चुनाव के कुछ वर्ष बाद बलिहारी बाबू की पुन: 2017 में बसपा में वापसी हुई लेकिन उन्हें कोई पद नहीं दिया गया। पार्टी में अपनी उपेक्षा के चलते उन्होंने 2020 में सपा का दामन थाम लिया। फिर मिशन 2022 के तहत सपा मुखिया को यूपी का मुख्यमंत्री बनाने के लिए काम शुरू कर दिया था।

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