1857 में 81 दिन तक आजाद रहा जिला

-प्रथम क्रांति में आज का दिन -तीन जून को क्रांतिकारियों ने जेल के फाटक को तोड़ दिया अपन

By JagranEdited By: Publish:Thu, 03 Jun 2021 12:53 AM (IST) Updated:Thu, 03 Jun 2021 12:53 AM (IST)
1857 में 81 दिन तक आजाद रहा जिला
1857 में 81 दिन तक आजाद रहा जिला

-प्रथम क्रांति में आज का दिन

-तीन जून को क्रांतिकारियों ने जेल के फाटक को तोड़ दिया, अपने साथियों को कराया था आजाद

-जिसका गवाह अंग्रेजों के जमाने की जेल व उसकी बैरकें आज भी हैं

-एक-एक इंच भूमि पर अधिकार को अंग्रेजों को नाकों चने चबाने पड़े थे अनिल मिश्र, आजमगढ़ : 1857 की प्रथम क्रांति के समय जनपदवासियों ने अपूर्व साहस, त्याग और बलिदान का परिचय दिया था, जो स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा। देश की आजादी को अक्षुण्ण रखने वाले देशवासियों को भविष्य में सतत प्रेरणा मिलती रहेगी। जिले की एक-एक इंच भूमि पर अधिकार के लिए अंग्रेजों को नाकों चने चबाने पड़े थे। कई कठोर व भीषण युद्ध करने पड़े। 1857 में 81 दिनों तक जनपद आजाद रहा, जिसका गवाह अंग्रेजों के जमाने की जेल और उसकी बैरकें आज भी हैं।

मेरठ से उठने वाली प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की लहर ने दिल्ली से लेकर जिले तक को आंदोलित कर दिया था। तीन जून 1857 में क्रांतिकारियों ने जेल के फाटक को तोड़ दिया और अपने साथियों को आजाद कराया। यह लड़ाई मुख्य रूप से मंदुरी, अतरौलिया, कोयलसा, मेघई सहित जिले के कई हिस्सों में रही। स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने जिले को तीन बार तीन जून 1857 से 25 जून 1857, 18 जुलाई 1857 से 26 अगस्त 1857 और 25 मार्च 1858 से 15 अप्रैल 1858 तक यानि कुल 81 दिन कंपनी राज से आजाद कराया था। इसी से प्रभावित होकर वीर कुंवर सिंह जिले की आजादी की लड़ाई में आए थे। 1857 में जाति-धर्म, भाषा व क्षेत्रवाद से ऊपर उठकर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जंग-ए-आजादी में देशवासी शामिल हुए थे। उस एकता से ब्रिटिश साम्राज्यवादी शक्ति की चूलें हिल गईं थीं और कंपनी राज की जगह ब्रिटिश राज भारत की सत्ता की कमान संभालनी पड़ी थी। फिर भी भविष्य में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ बढ़ते आक्रोश ने अंग्रेजों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया था। यही कारण है कि 1857 की क्रांति की याद आते ही जिले के लोगों को सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। क्योंकि इसी दिन जिले के वीर सपूतों ने जनपद को कंपनी राज से मुक्त कराया था, भले ही कुछ ही दिनों के लिए लेकिन इतिहास के पन्ने में यह स्वर्णिम अक्षर में अंकित है। अंग्रेजी सेना के समक्ष वीरों सपूतों की इस जंग की एक एक दास्तान आज भी यहां गुने व बुने जाते हैं।

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