आंखों के आंसू पोंछ निर्भय जीवन जीने की राह दिखा रहीं विनीता

जागरण संवाददाता औरैया नारी के अनेक रूप हैं। हर रूप में कोई न कोई उद्देश्य छिपा है। क

By JagranEdited By: Publish:Thu, 07 Oct 2021 04:09 PM (IST) Updated:Fri, 08 Oct 2021 03:10 PM (IST)
आंखों के आंसू पोंछ निर्भय जीवन जीने की राह दिखा रहीं विनीता
आंखों के आंसू पोंछ निर्भय जीवन जीने की राह दिखा रहीं विनीता

जागरण संवाददाता, औरैया: नारी के अनेक रूप हैं। हर रूप में कोई न कोई उद्देश्य छिपा है। कुछ ठान लिया तो उसे कर दिखाने की क्षमता भी नारी-शक्ति में है। इसके कई उदाहरण हैं। क्षेत्र चाहे कोई

भी हो। नारी सशक्तीकरण में एक ऐसी ही नजीर हैं विनीता पांडेय। शहर के मुहल्ला गोविदनगर की रहने वाली विनीता जिले की प्रथम महिला मास्टर आफ ला (एलएलएम) हैं। वहीं स्थायी लोक अदालत सदस्य भी हैं। महिला उत्पीड़न के खिलाफ छात्र जीवन में ही उन्होंने अपनी आवाज को बुलंद कर दिया था। दृढ़ संकल्प के साथ आगे बढ़ती गई और कई पीड़ितों को इंसाफ दिलाया। उनके आंखों के आंसू पोंछे व निर्भय जीवन जीने की राह दिखाई।

विनीता पांडेय का मानना है कि संकल्प व हौसले से कुछ भी बदला जा सकता है। उन्होंने छात्र जीवन से ही महिलाओं व बेटियों के साथ हो रहे शोषण व अत्याचार ने उन्हें मजबूत बनाया। विधिक शिक्षा ग्रहण करने में स्वजन का विरोध सहन करना पड़ा। लेकिन पिता के समर्थन से उन्होंने लखनऊ से कानूनी की शिक्षा हासिल की। विधिक शिक्षा ग्रहण करने का उद्देश्य कानूनी जानकारी हासिल कर समाज में नारी को सबल बनाकर उन्हें अधिकारों के प्रति जागरूक करना है। जिसका वह बखूबी निर्वहन कर रही हैं। उन्होंने कई बेटियों के मामले निपटाए हैं। जो ससुरालीजन के अत्याचार से पीड़ित थीं। उन्होंने कई महिलाओं को इंसाफ दिलाया। कुछ केस में समझौते भी कराए और यह सिलसिला जारी है। शहर के कांशीराम कालोनी निवासी एक दंपती के बीच हुआ विवाद कानूनी के दायरे में रहा।

पत्नी ने खुदकुशी करने का मन बना लिया तो उसे समझाने के लिए उसे अपने पास ही रखा, किसी तरह उसका मन बदला। विनीता का कहना है कि उन्होंने समाज की भ्रांतियों व दहेज रूपी विकृतियों को दूर करने का संकल्प लिया है। बिधूना, एरवाकटरा, औरैया के अन्य ब्लाकों के अलावा समूचे जिले में उन्होंने अपनी पहचान स्थापित की है।

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विनीता के बोल..

न अबला न बेचारी हूं, मैं आज के युग की नारी हूं

कम करके मुझको न आंको, मैं सारे जग पर भारी हूं

सदियों से जी ओरों के लिए, अपराध व अत्याचार सहे,

डरती नहीं मैं दुनिया से, अपनों से सदा मैं हारी हूं।

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