पृथ्वी पर हैं तीन रत्न, जल-अन्न व सुभाषित

जागरण संवाददाता औरैया जल मानव जीवन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंग है। कहा जाता है कि पृथिव्य

By JagranEdited By: Publish:Sat, 17 Apr 2021 11:16 PM (IST) Updated:Sat, 17 Apr 2021 11:16 PM (IST)
पृथ्वी पर हैं तीन रत्न, जल-अन्न व सुभाषित
पृथ्वी पर हैं तीन रत्न, जल-अन्न व सुभाषित

जागरण संवाददाता, औरैया: जल मानव जीवन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंग है। कहा जाता है कि 'पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि जलम् अन्नम् सुभाषितम्। मूढ़ै: पाषाणखण्डेषु रत्नसंज्ञा विधीयते।' इसका तात्पर्य पृथ्वी पर तीन ही रत्न हैं जल,अन्न व सुभाषित। अज्ञानतावश लोग पत्थर के टुकड़ों को रत्नों की संज्ञा देते हैं। यह विचार जनता इंटर कॉलेज अजीतमल के संस्कृत प्रवक्ता डॉ. शशि शेखर ने मिश्र व्यक्त की। उनका मानना है कि पर्यावरण संरक्षण के लिए जल की प्रत्येक बूंद का सदुपयोग अत्यंत आवश्यक है। वर्तमान समय में हमारे विभिन्न उपकरणों में अनावश्यक रूप से जल की बर्बादी होती है हमें हम यदि केवल इसी बर्बादी को रोक ले और उस जल का प्रयोग विभिन्न पौधों को सींचने में करें। इससे एक स्वस्थ पर्यावरण का निर्माण होगा। उदाहरणस्वरूप आरओ में जल शोधन प्रक्रिया में एक बड़ा हिस्सा व्यर्थ बहा दिया जाता है। इसे यदि हम बाल्टियों में भरकर रख लें तो इससे हम लोग न केवल फल और सब्जियां धो सकते हैं। बल्कि उसके पश्चात इस जल को अपने पौधों में भी डाल सकते हैं। जिससे वे निरंतर हरे-भरे रहते हैं। यह देखा गया है कि घर के ऊपर रखी पानी की टंकी से निकलने वाला अतिरिक्त पानी पाइप से होकर बड़ी मात्रा में बर्बाद होता है। इसे हम पौधों तक पहुंचा दें तो मात्र इतने जल से भी हम अपने वातावरण को हरा-भरा रख सकते हैं। डॉ. मिश्र ने अपने विद्यालय के शिक्षक आवास में रहते हुए इन विचारों को कार्यरूप में भी परिणत किया है। उनके आवास पर नगर पंचायत की पाइप लाइन से जलापूर्ति होती है। उन्होंने अपनी पानी की टंकी से अतिरिक्त बहाव वाले पाइप से पौधों तक पानी पहुंचाने की व्यवस्था कर रखी है। जिसके कारण उनके आंगन में अनेक प्रकार के वृक्ष एवं पौधे शोभायमान होते हैं। इनमें प्रमुख रूप से अमरूद, पांकर, शहतूत, गुड़हल, करी पत्ता, रात की रानी, मालती, चमेली, नींबू आदि प्रमुख हैं। छोटे पौधों में भी तुलसी, मोगरा, गुलाब, क्रोटन, नागफनी (स्नेक प्लांट) प्रमुख रूप से विद्यमान हैं। घर के अंदर भी आरओ के व्यर्थ जल का उपयोग पौधों को सींचने एवं फलों व सब्जियों को धुलने में किया जाता है। इस प्रकार जल संसाधन का समुचित उपयोग करते हुए डॉ. मिश्र पर्यावरण संरक्षण में भी अपना योगदान दे रहे हैं। वह अपने छात्रों को भी सदैव जल संरक्षण के लिए प्रेरित करते रहते हैं। समय समय पर विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताओं के आयोजन द्वारा भी छात्रों एवं छात्राओं के मध्य जागरूकता फैलाने का सतत प्रयास करते रहते हैं।

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