फूल तो खिल रहे पर मुरझा रहे अरमान
संवाद सहयोगी अजीतमल कोरोना काल में हुई बंदी ने जहां आमजन की जिंदगी को रोक दिया है।
संवाद सहयोगी, अजीतमल: कोरोना काल में हुई बंदी ने जहां आमजन की जिंदगी को रोक दिया है। वहीं,फूलों की खेती कर जीवन यापन करने वालों को भी बुरी तरह प्रभावित किया है। खेतों में खिले फूल ग्राहक न मिल पाने की वजह से मुर्झाने को मजबूर हैं। कह सकते हैं, विभिन्न आयोजनों में भारी मांग वाले पुष्पों को अब खरीदारों की राह देख रहे हैं। लेकिन, फूलों को खरीदने वाले भी बंदी की वजह से लाचार हैं। तेज होते धूप से फूलों को बचाने के लिए किसान तरह-तरह के जतन कर रहे। तोड़ने के बाद घर में सुरक्षित रखने को बर्फ का भी सहारा ले रहे हैं। यानी 'नौ की लकड़ी नब्बे खर्च'।
कोरोना कर्फ्यू में बाजार व दुकान कुछ ही समय के लिए खुल रहे हैं। धार्मिक आयोजनों के साथ शादी-बरात में नियमों की सख्त क्षेत्र के ग्राम चकसत्तापुर के अनिल राजपूत को अपने खेतों में फूलों की फसल को सहेजने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है। बढ़े तापमान की वजह से दो दिन में खेतों की नमी समाप्त हो जाती है। खिले फूलों को तोड़कर बर्फ की चादर बनाकर बीच में फूलों का रखना पड़ रहा है। अनिल बताते हैं कि एक बीघा खेत में सबसे अधिक नवरंग, गेंदा और गुलाब के फूल हैं। फरवरी के अंत में कोटा राजस्थान से पौध लाकर लगवाई थी। अनुमान से अधिक फूल निकल रहे हैं। कोरोना की वजह से धार्मिक आयोजन ठप होने से फूल नहीं बिक पा रहे हैं। समय की बलिहारी है कि पूजा की थाल में सजने वाले फूलों की मांग अंतिम संस्कार में बढ़ गई है। उन्होंने बताया कि खेतों में फूलों को धूप से बचाने के लिए पानी का छिड़काव किया जा रहा। टूटे फूलों को बचाने के लिए बर्फ में रखना पड़ रहा। बर्फ में एक-दो दिन तक इन फूलों को सहेज कर रखा जा सकता है। फूलों को बचाने के लिए कमरे में चारों ओर बर्फ लगानी पड़ती है। सरकार को फूलों की खेती करने वालों के लिए कुछ छूट या अन्य कोई तरीका खोजना चाहिए। जिससे भविष्य में फूलों की इन तमाम प्रजातियों का अस्तित्व बना रहे।