मानसून की आहट से 'स्वदेश' जाने लगे 'परदेसी'
संवाद सहयोगी अजीतमल प्रदेश के दूर-दराज क्षेत्रों सहित पड़ोसी राज्य बिहार से आने वाले भट्ठा
संवाद सहयोगी, अजीतमल: प्रदेश के दूर-दराज क्षेत्रों सहित पड़ोसी राज्य बिहार से आने वाले भट्ठा श्रमिक मानसून की आहट होते ही अपने घरों को वापस लौटने लगे हैं। इनके क्षेत्र में इनके हाथों को काम न मिल पाने और परिवार के भरण-पोषण को लेकर परिवार सहित यह श्रमिक इस क्षेत्र में आ जाते हैं। कोरोना काल में लौट रहे श्रमिक अपने पांच माह का गुजारा जमा किए गए धन से ही करेंगे। बरसात के चलते अब भट्ठों पर ईंट-पथाई और निकासी बंद हो गई है।
क्षेत्र के ईंट भट्टों पर पथाई, झुकाई, निकासी आदि करने के लिए श्रमिकों की जरूरत पड़ती है। बिहार राज्य के कुछ चुने हुए गांवों सहित फतेहपुर, बांदा, महोबा, राठ हमीरपुर, मथुरा, अलीगढ़ आदि जनपद के गांवों से शारदीय नवरात्र के बाद श्रमिकों का आना शुरू हो जाता है। मानसून की आहट होते ही जून माह में ये मजदूर अपने घरों को फिर से लौट जाते हैं। करीब पांच महीनों तक खाली बैठकर कमाई पूंजी पर निर्भर इन श्रमिकों का जीवन आसान नहीं होता। साथ ही कोरोना काल के चलते यह दर्द और भी बढ़ गया। श्रमिकों का कहना है कि यदि उन्हें अपने ही गांव और क्षेत्रों में काम मिलने लगे, तो सैकड़ों मील दूर आकर श्रम न करना पड़े। भट्ठा व्यवसायी शिवकुमार गुप्ता ने बताया ने बताया कि अलग-अलग क्षेत्रों से आने वाले श्रमिक अलग काम मे निपुण होते हैं। प्रतापगढ़ और रायबरेली की ओर से आने वाले मजदूर झुकाई में तो मथुरा की ओर से आने वाले मजदूर बुग्गी से ईंटों को रखने और निकासी करने में निपुण होते हैं। वहीं महोबा, हमीरपुर, बिहार, फतेहपुर आदि से आने वाले मजदूर पथाई में निपुण होते हैं। एडवांस लेकर आने वाले श्रमिक यदि मेहनत से कार्य कर लेते हैं, तो यहां से जाने के बाद पांच महीनों तक आराम से जीवन यापन कर लेते हैं।