बच्चों की जायज व नाजायज ख्वाहिश समझना जरूरी

आधुनिक युग की सामाजिक समस्याएं दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। ऐसे में अभिभावकों को थोड़ा बहुत कठोर बनना पड़ेगा। अपने बच्चों की जायज और नाजायज ख्वाहिश में फर्क रखकर उनकी आवश्यक बात को पूरा और अनावश्यक इच्छा को अधूरा छोड़ना पड़ेगा। यह बात शिव इंटर कालेज के प्रधानाचार्य कैप्टन सूदन ¨सह ने कही।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 26 Sep 2018 10:47 PM (IST) Updated:Wed, 26 Sep 2018 10:47 PM (IST)
बच्चों की जायज व नाजायज ख्वाहिश समझना जरूरी
बच्चों की जायज व नाजायज ख्वाहिश समझना जरूरी

गजरौला : आधुनिक युग की सामाजिक समस्याएं दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। ऐसे में अभिभावकों को थोड़ा बहुत कठोर बनना पड़ेगा। अपने बच्चों की जायज और नाजायज ख्वाहिश में फर्क रखकर उनकी आवश्यक बात को पूरा और अनावश्यक इच्छा को अधूरा छोड़ना पड़ेगा। यह बात शिव इंटर कालेज के प्रधानाचार्य कैप्टन सूदन ¨सह ने कही।

बुधवार को शिव इंटर कालेज में दैनिक जागरण की ओर से आयोजित संस्कारशाला में प्रधानाचार्य ने बच्चों को ख्वाहिश पूरी, परवरिश अधूरी विषय के बारे में विस्तार से जानकारी दी। कहा आजकल के अभिभावक अपने बच्चों को संसाधनों की अहमियत समझाना भूलते जा रहे हैं। इसका नतीजा यह है कि ख्वाहिश तो पूरी हो जाती हैं पर परवरिश अधूरी रह जाती है। हमें ख्वाहिशों के अंतर को बारीकी से समझना होगा।

आगे कहा कि धनाढ्य वर्ग अपने बच्चों की हर जायज-नाजायज मांग को आंख मूंदकर पूरा करने में जुटा रहता है। उनकी देखा देख माध्यम वर्ग भी इसी राह पर चल पड़ा है। यह अंधप्रवृत्ति हमारे व हमारे बच्चों के जीवन के लिए काफी खतरनाक साबित हो सकती है। उन्होंने कहा कि आज के बच्चे माता-पिता को अपने ढंग से परवरिश करने के लिए मजबूर करते हैं। बच्चों की जिद पूरी करने के चक्कर में अभिभावक बहुत सी नैतिक जिम्मेदारियों को दरकिनार कर रहे हैं। लगातार घट रहा संयुक्त परिवार का प्रचलन इसके लिए कुछ हद तक जिम्मेदार है। संयुक्त परिवार में बच्चा अपने बड़े बुजुर्गों के पास बैठकर कथा कहानियों के माध्यम से नैतिक मूल्यों के बारे में सीखते थे। इससे किताबी ज्ञान के साथ नैतिक संस्कार भी साथ-साथ मिलते थे, लेकिन आज ¨जदगी इतनी तेजी से दौड़ रही है कि इसमें इंसान केवल मशीन बनकर रह गया। किसी के पास इतना वक्त नहीं कि बच्चों के पास कुछ पल व्यतीत करते हुए उनकी भावनाओं को समझ सकें। आजकल की पढ़ाई ने बच्चों की परिवार और रिश्तेदारों से न केवल दूरी ही बना दी है, बल्कि माता-पिता से भी बच्चों ने दूरी बनाना शुरू कर दिया है। ऐसे में संस्कारों की कल्पना करना व्यर्थ होगा।

आज बच्चों में बड़ों के लिए प्यार और सम्मान नहीं रह गया। ऐसा ही चलता रहा तो आधुनिक युग की सामाजिक समस्याएं दिन-ब-दिन बढ़ती चली जाएंगी। अब माता पिता को थोड़ा बहुत कठोर बनना पड़ेगा। अपने बच्चों की जायज और नाजायज मांग में फर्क रखकर उनकी आवश्यक बात को पूरा और अनावश्यक इच्छा को अधूरा छोड़ना पड़ेगा। परवरिश का मतलब पालन-पोषण के साथ-साथ संस्कार देने से है। वर्तमान परिवेश में हर व्यक्ति अपने बच्चों से ख्वाहिश पूरी करने की इच्छा रखता है, लेकिन परवरिश अधूरी देता है। उसे इच्छा होती है कि गुणवान, ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ, सामाजिक यश, प्रतिष्ठा प्राप्त हो, लेकिन वह अधूरी परवरिश के कारण पीछे रह जाता है। ऐसे में अभिभावक बच्चे जायज मांग को पूरा करते हुए नाजायज बात को अनदेखा करें।

जयपाल ¨सह, प्रवक्ता

शिव इंटर कालेज, गजरौला। बच्चों को उचित परवरिश देनी जरूरी है। सही परवरिश देंगे तभी ख्वाहिशें पूरी हो सकती हैं। हम घर में राम, सीता, कृष्ण की चाहत रखते हैं, लेकिन दशरथ, कौशल्या, जनक नहीं बनना चाहते। जिसकी वजह से पढ़े-लिखे नौजवान नवयुवती सकारात्मक सोच के स्थान पर नकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ते हैं।

प्रियंका, छात्रा। वृद्धावस्था में लड़के-बहू सेवा नहीं करना चाहते हैं यह सब उनका बेटा भी देखता है और जैसा देखता है वैसा ही अपने मां-बाप के साथ भी करता है। इसी खराब परवरिश की वजह से ही आज भारत में वृद्धाश्रम खुल रहे हैं, जो शर्मनाक है। इसलिए बच्चों को संस्कारवान बनाते हुए माता-पिता अच्छी परवरिश दें।

- तनु, छात्रा।

परवरिश के लिए माता-पिता का धनवान होना आवश्यक नहीं बल्कि उनका बच्चों की क्रियाओं पर ध्यान होना जरूरी है। क्योंकि बच्चे उस राह से गुजर रहे होते हैं, जिन राहों का हमारे बड़ों को अनुभव है। इसलिए बच्चों को अनुभव के अनुरूप परवरिश दे, जो उनके लिए उचित हो। ताकि समाज में वह उत्कृष्ट नागरिक बन सके।

पारूल, छात्रा

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