संस्कारों से बढ़ती है मनुष्य की शोभा

लोबल पब्लिक स्कूल के प्रधानाचार्य मुकेश शर्मा ने कहा कि संस्कार के सहारे मनुष्य आदर पाता है। सम्मानित होता है। संस्कार विहिन मनुष्य कागज के फुल के समान है। जिस प्रकार तालाब की शोभा कमल से होती है, सभा की शोभा श्रोता से होती है, स्त्री के श्रंगार की शोभा उसके पति से होती है, घर की शोभा नारी से होती है। उसी तरह से मनुष्य शोभनीय तभी होता है जब वह संस्कारित होता है।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 08 Oct 2018 11:11 PM (IST) Updated:Mon, 08 Oct 2018 11:11 PM (IST)
संस्कारों से बढ़ती है मनुष्य की शोभा
संस्कारों से बढ़ती है मनुष्य की शोभा

मंडी धनौरा : संस्कार के सहारे मनुष्य आदर पाता है। सम्मानित होता है। संस्कार विहीन मनुष्य कागज के फूल के समान है। जिस प्रकार तालाब की शोभा कमल से होती है, सभा की शोभा श्रोता से होती है, स्त्री के श्रंगार की शोभा उसके पति से होती है, घर की शोभा नारी से होती है। उसी तरह से मनुष्य शोभनीय तभी होता है जब वह संस्कारित होता है।

यह विचार गजरौला मार्ग स्थित ग्लोबल पब्लिक स्कूल में संस्कारशाला कार्यक्रम के दौरान प्रधानाचार्य मुकेश शर्मा ने व्यकत किए। कहा मनुष्य के जीवन में संस्कारों का विशेष महत्व है। पुत्र सुपुत्र है या कुपुत्र है यह संस्कारों के माध्यम से ही प्रतीत होता है। हमारी भारतीय संस्कृति की सभ्यता और पवित्रता मनुष्य के माध्यम से ही प्रचलित है। मन की सोच और जीवन शैली से सभ्यता और पवित्रता की रक्षा हो सकती है। जीवन शैली में अन्तर आ गया है, जीवन शैली में आधुनिकता आ गई और विचारों में भी आधुनिकता आ गई इसलिए संस्कृति पर बड़ी तेजी से आघात हो रहा है। जीवन शैली को सुखद बनाने के लिए संस्कार आवश्यक है।

कहा शिक्षा के साथ साथ संस्कार का ज्ञान होना भी अत्यंत जरूरी है। आप शिक्षित है मगर संस्कार विहीन है तो आपका शिक्षित होना बेकार है। जैसे एक अधिवक्ता हैं वह घर में बच्चों के साथ और पत्नी के साथ अदालत की भाषा बोलेगा तो परिजन उसके पास नहीं रहेंगे। वहां तो दाम्पत्य जीवन के अनुसार व्यवहार करना होगा और बच्चों को पिता का प्यार देना होगा। बच्चे पिता को पिता ही कहते है जिस दिन डिग्री के हिसाब से बच्चे पुकारने लग जायेगे उस दिन संस्कृति ही मिट जायेगी। व्यक्ति को सही सलामत चलने के लिए दोनों पैर सुरक्षित होना आवश्यक है उसी प्रकार जीवन सही सलामत, शान्तिपूर्ण जीने के लिए शिक्षा और संस्कार दोनों आवश्यक है। वर्तमान में शिक्षा तो मजबूत हो रही है मगर संस्कार कमजोर होते जा रहे इसलिए जीवन का तालमेल बिगड़ रहा है। हीरा जौहरी के पास जाने के बाद ही कीमती होता है और मिट्टी कुम्हार के पास जाने के बाद कुंभ (घड़ा) बनती है तथा घड़ा बनने के बाद उसमें जल धारण करने की साम‌र्थ्य आ जाती है। उसी प्रकार माता-पिता से संस्कारित होकर आदर्श मनुष्य बन जाता है। बचपन से 10 वर्षो तक की उम्र में जो संस्कार मिलेंगे वैसा ही होगा। माता-पिता स्वयं संस्कारवान होते हैं तो बच्चे सन्तान भी अच्छी संस्कारित होती है। संस्कारों के बिना मनुष्य पशु समान है। शिक्षा के साथ साथ संस्कारों को जानना जरूरी है। दैनिक जागरण संस्कारों को ¨जदा रखने की मुहिम चला रहा है। जो सचमुच में प्रशंसनीय है।

बवलीन कौर, छात्रा। हम विद्यालय में शिक्षा ग्रहण करने के लिए जाते है। शिक्षा हमें आत्म निर्भर बनाती व हमारे विकास का मार्ग प्रशस्त करती है। मगर संस्कार हमारे जीवन में आदर व सम्मान की भावना पैदा करते है।

दुष्यंत, छात्र। संस्कार मनुष्य के जीवन में एक गहने के समान है जो उसे अन्य लोगों से अलग बनाते है। भगवान राम मर्यादा पुरुषोत्तम थे। उन्होंने मानव जीवन की मर्यादाओं का निर्वहन किया व लोगों को संस्कारों को ज्ञान भी कराया।

तुषार कुमार, छात्र। दैनिक जागरण बच्चों को संस्कारों से जोड़ने का कार्य कर रहा है। जागरण के प्रयास से हमें संस्कारों का पता चल रहा है। मनुष्य को चाहिए कि वह अपने से बड़ों का मान व सम्मान करे।

तुषार, छात्र।

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