सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करने की भी आदत डालनी चाहिए

सार्वजनिक उपयोग की संपत्ति की रक्षा करने की भी हमें आदत डालनी चाहिए।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 22 Sep 2021 11:49 PM (IST) Updated:Wed, 22 Sep 2021 11:49 PM (IST)
सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करने की भी आदत डालनी चाहिए
सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करने की भी आदत डालनी चाहिए

सार्वजनिक उपयोग की संपत्ति की रक्षा करने की भी हमें आदत डालनी चाहिए। ग्राम समाज, सड़क, बस स्टैंड, चौराहे, यात्री शैड, सार्वजनिक शौचालय यह सभी सरकारी संपत्ति होती हैं। सरकारी भूमि जो सार्वजनिक उपयोग की है उस पर कोई कब्जा कर रहा है तो प्रशासन की मदद से उसकी रक्षा करना भी हमारा कर्तव्य है। इसके साथ ही हमें फिजूल खर्ची से बचने की आदत डालनी चाहिए। रोजमर्रा की जिन चीजों का हम इस्तेमाल करते हैं, यदि वह वस्तुएं ठीक काम कर रही हैं तो नई चीजें नहीं खरीदनी चाहिए। फिजूल खर्ची से रोकने से हमारा परिवार और देश दोनों मजबूत होते हैं। बचपन में माता पिता भी हमें फिजूल खर्ची कम करने की नसीहत देते हैं। माता पिता की दी हुई नसीहत हमें क्षणिक भर के लिए बुरी तो लग सकती है, लेकिन वह हमारे हित में होती है। जीवन में फिजूल खर्ची रोककर की जाने वाली बचत आगे चलकर बड़ी धनराशि बन जाती है जो जरूरत पड़ने पर हमें सहारा देती है। इतना ही नहीं फिजूल खर्ची बड़े धनवान इंसान को निर्धन बना देती है और सोच समझकर खर्च करने वाले निर्धन लोग भी बचत करने से धनवान बन जाते हैं। आयुष अपने घर के बाहर खड़ा था। इम्तिहान खत्म हो गए थे। सारे दोस्त कहीं न कहीं घूमने चले गए थे, लेकिन पापा ने कहा था कि जब तक कोरोना पूरी तरह खत्म न हो जाए, हम कहीं नहीं जाएंगे। कहीं गए तो या तो किसी को संक्रमित करेंगे या फिर किसी से संक्रमित होंगे। जब तक जरूरी न हो घर से बाहर नहीं निकलेंगे। आयुष को पिता की बात का बुरा लगा था लेकिन, पापा की बात तो माननी ही थी। वह सामने लगे बड़ के पेड़ पर बैठे कोतवाल पक्षी के जोड़े को देख रहा था और उसके नाम के बारे में सोचकर मुस्कुरा रहा था। कोतवाल पक्षी की पहचान भी दादा जी ने उसे कराई थी। पक्षी की पूंछ में वी का निशान है तो वह कोतवाल है। तभी सामने वाली पिकी आंटी ने आवाज लगाकर पूछा आयुष तुम्हारी मम्मी हैं घर पर। उसके हां कहने पर वह अंदर आ गई। कहने लगी अरे बहन जी तुमने अभी यह पुराना वाला कंप्यूटर बदला नहीं। इतना बड़ा सा डिब्बा कितना बुरा लगता है। उनकी बात सुनकर मम्मी ने मुस्कुराते हुए कहा जब तक काम दे रहा है, तब तक नया लेने का क्या फायदा। सुनकर पिकी आंटी बोली आजकल तो तीन महीने में कंप्यूटर बदल जाते हैं। टिन्नी को तो बस यही शौक है। हर दूसरे दिन मोबाइल और लैपटॉप बदलना। मम्मी के साथ गप्पे लड़ाकर पिकी आंटी तो चली गई, मगर आयुष परेशान हो गया। टिन्नी के पापा और आयुष के पापा एक ही दफ्तर में थे। तब ऐसा क्यों था कि टिन्नी की हर जरूरत पूरी हो सकती थी, बल्कि फिजूल खर्ची भी। आयुष की मम्मी और पापा तब तक किसी चीज को नहीं फेंकते थे, जब तक वह किसी काम आती थी। कोई नई चीज तभी घर में आती, जब पुरानी एकदम बेकार न हो जाए। उसके पापा अक्सर मशहूर उद्योगपति फोर्ड का किस्सा सुनाते थे, जो एक फटे कोट को ही पहनते थे। शास्त्री जी अपने निजी कामों के लिए सरकारी कार का इस्तेमाल नहीं करते थे। वह हर पल देश की भलाई के बारे में सोचते थे। उन्हें लगता था कि देश की एक एक पाई बहुत कीमती है। उसे आम लोगों के भले के लिए खर्च करना चाहिए। एक बार ऐसा हुआ कि सरकारी गाड़ी शास्त्री जी के घर पर खड़ी थी। उनके बेटे ने देखा तो गाड़ी में सैर करने का मन आया। बस, वह गाड़ी को लेकर फुर्र हो गया। जब घर लौटा और शास्त्री जी को पता चला तो वह बहुत नाराज हुए। उन्होंने पता किया कि गाड़ी कितने किलोमीटर चली फिर, उतने पेट्रोल का पैसा सरकारी खजाने में जमा कराया। तो सोच लो कि शास्त्री जी जैसा महान बनना है। जिनकी ईमानदारी को इतने वर्ष बाद भी लोग याद करते हैं।

- बृजगोपाल यादव, प्रधानाचार्य, लाला सत्यप्रकाश लक्ष्मी देवी सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कालेज, हसनपुर।

chat bot
आपका साथी