घाघरा नदी लाल निशान छूने को बेताब, ग्रामीणों की चिता बढ़ी
मानसूनी बरसात के बीच घाघरा नदी का जलस्तर खतरे के लाल निशान को छूने के लिए बेताब हो रही है।
अंबेडकरनगर : मानसूनी बरसात के बीच घाघरा नदी का जलस्तर खतरे के लाल निशान को छूने के लिए बेताब है। नदी के जलस्तर में 24 घंटे के अंदर नौ सेंटीमीटर का इजाफा हुआ है। नदी खतरे के लाल निशान 92.730 मीटर से 64 सेंटीमीटर नीचे बह रही है। बढ़ते जलस्तर से तटीय इलाकों में रहने वाले ग्रामीणों के माथे पर चिता की लकीरें खिच गई हैं।
घाघरा नदी की उफनाती लहरें हर साल बाढ़ की भयावह तस्वीर पेश करती हैं। सैकड़ों लोगों की गृहस्थी व हजारों एकड़ फसल पानी के सैलाब में बह जाती है, लेकिन बचाव के लिए प्रशासन उदासीन ही रहता है। इस बार भी मानसून ने दस्तक दे दी है। बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में प्रशासन की ओर से कोई तैयारी नहीं की गई है। टांडा का मांझा उल्टहवा क्षेत्र नदी की दो धाराओं के बीच बसा है। प्रशासन द्वारा बचाव के नाम पर मांझा उल्टहवा में नौकाओं को लगा दिया जाता है। इसके अतिरिक्त उनके खाने पीने के लिए लाई, चना, नमक, चावल, माचिस, सरसों का तेल आदि वितरित कर प्रशासन अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेता है। मौजूदा समय में घाघरा नदी का जलस्तर डेढ़ सेंटीमीटर प्रति घंटा की दर से बढ़ रहा है। यह खतरे के निशान 92.730 से महज 64 सेंटीमीटर नीचे 92.060 पर है।
-दर्जनभर गांव बाढ़ से होते हैं प्रभावित : नदी में प्रत्येक साल आने वाली बाढ़ से मांझा क्षेत्र के आसोपुर, महरीपुर, अवसानपुर, केवटला, मांझा चितौरा, डुहिया, मांझा उलटहवा, मांझा कला समेत 12 से अधिक गांव प्रभावित होते हैं। सबसे बद्तर स्थिति मांझा उलटहवा व मांझा कलां की होती है। यहां के सभी 12 मजरे पूरी तरह जलमग्न हो जाते हैं। अधिकांश परिवार गांव से पलायन कर अपने रिश्तेदारों के यहां शरण लेते हैं या फिर स्थानीय प्रशासन द्वारा स्थापित बाढ़ चौकियों पर रहने को विवश होते हैं।
-बाढ़ से बचाव का हो मुकम्मल प्रबंध : मांझा उल्टहवा के राजेंद्र व मांझा कला के रामलाल कहते हैं कि बाढ़ की तबाही का दंश झेलना तो हमारी मजबूरी है। हम जहां बसे हैं, वहां गांव के उत्तर व दक्षिण ओर नदी है। जब भी बरसात होती है, बाढ़ पूरे गांव को तबाह कर देती है। इसलिए बचाव के लिए मुकम्मल प्रबंध होने चाहिए। उपजिलाधिकारी अभिषेक पाठक ने बताया कि बाढ़ से निपटने को लेकर तैयारी की जा रही है।