Yoga Guru Anand Giri Expulsion Case: आनंद के जरिए नरेंद्र गिरि के 'रुतबे' पर निशाना, पर्दे के पीछे से बिसात बिछा रहे असंतुष्ट
Yoga Guru Anand Giri Expulsion Case लगातार दूसरी बार अध्यक्ष बनने से नरेंद्र गिरि का रुतबा काफी बढ़ गया था। उनके विरोधी सीधे मोर्चा खोलने के बजाय गुरु-शिष्य में दूरी पैदा करने लगे। कुछ नरेंद्र गिरि को आनंद गिरि के खिलाफ भड़काते रहे।
प्रयागराज,जेएनएन। महंत नरेंद्र गिरि और उनके शिष्य स्वामी आनंद ऊगिरि के बीच चल रहा विवाद यूं ही सामने नहीं आया। पिछले कुछ सालों से इसके लिए बिसात बिछाई जा रही है। पहले गुरु-शिष्य में दूरी पैदा की गई। फिर सीधे विरोध के बजाय आनंद गिरि के जरिए चाल चली गई। ऐसा करने वालों में नरेंद्र गिरि के करीबी महात्मा भी हैं। कुछ श्रीनिरंजनी अखाड़े के हैं तो कुछ दूसरे अखाड़े के। ऐसा करने की अहम वजह नरेंद्र गिरि का अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष भी होना है। उन्हें विवादित कर पद से हटाने की साजिश भी इस विवाद की पृष्ठभूमि मानी जा रही है।
पर्दे के पीछे से बिसात बिछा रहे हैं कई असंतुष्ट संत व महात्मा
महंत नरेंद्र गिरि ने 2004 में श्री मठ बाघम्बरी गद्दी के पीठाधीश्वर और बड़े हनुमान मंदिर के महंत के रूप में कार्यभार संभाला था। मठ तथा मंदिर को भव्य स्वरूप दिलवाया। नासिक कुंभ से पहले 2014 में उन्हें संतों की सबसे बड़ी संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष चुना गया। इसके बाद नरेंद्र गिरि का रुतबा नेताओं तथा अधिकारियों के बीच बढ़ गया। जिस श्री निरंजनी अखाड़े में वह हाशिए पर थे, उसी अखाड़े में उनकी अहमियत बढ़ गई। अखाड़े के प्रभावशाली लोग किनारे हो गए। नरेंद्र गिरि का बढ़ता कद उन्हें अखरने लगा। अखाड़ा परिषद अध्यक्ष के रूप में नरेंद्र गिरि ने वर्ष 2017 में किन्नर और परी अखाड़े को मान्यता देने से इन्कार कर दिया। अगले साल 2018 में फर्जी महात्माओं की सूची जारी करवाई। इसमें आसाराम बापू, राम रहीम, शनि उपासक महामंडलेश्वर दाती महाराज, महामंडलेश्वर नित्यानंद जैसे चर्चित नाम थे। कुछ अखाड़ों ने इस सूची का विरोध भी किया था लेकिन, नरेंद्र गिरि निर्णय पर अडिग रहे। विरोध की चिनगारी यहीं से सुलगने लगी। इधर 2019 प्रयागराज कुंभ में जूना अखाड़ा ने किन्नर अखाड़ा को अपने अधीन कर लिया तब भी उसे 14वें अखाड़े के रूप में मान्यता नहीं मिली।
नरेंद्र गिरि को विवादित कर अध्यक्ष पद से हटाने की साजिश
हर कुंभ में संबंधित प्रदेश के मुख्यमंत्री, केंद्र व प्रदेश के मंत्री, सत्ता पक्ष और विपक्ष के रसूखदार नेता, अधिकारी नरेंद्र गिरि के ही इर्द-गिर्द घूमते नजर आए। इधर 2020 में नरेंद्र गिरि का अखाड़ा परिषद अध्यक्ष के रूप में कार्यकाल पुन: पांच साल के लिए बढ़ गया। लगातार दूसरी बार अध्यक्ष बनने से नरेंद्र गिरि का रुतबा काफी बढ़ गया था। उनके विरोधी सीधे मोर्चा खोलने के बजाय गुरु-शिष्य में दूरी पैदा करने लगे। कुछ नरेंद्र गिरि को आनंद गिरि के खिलाफ भड़काते रहे। कुछ आनंद गिरि को उनके गुरु के खिलाफ भड़काने के साथ जरूरी दस्तावेज उपलब्ध करवाने लगे। दावा तो यहां तक है कि मुखर विरोध करने के लिए प्रोत्साहित करने वालों ने आनंद गिरि को निरंजनी अखाड़ा में सचिव पद पर वापसी कराने का भरोसा भी दिया है। शायद यही वजह है कि 21 अगस्त 2000 से आनंद गिरि जिस गुरु से संन्यास लेकर उनके संरक्षण में रहे, वही आज उन पर हमलावर हैं।
अखाड़ा परिषद अध्यक्ष के रूप में नरेंद्र गिरि के प्रमुख निर्णय
-फर्जी बाबाओं की सूची जारी करना।
-किन्नर व परीक्षा अखाड़ा को 14वें अखाड़े के रूप में मान्यता न देना।
-उज्जैन, प्रयागराज व हरिद्वार कुंभ में 13 अखाड़ों को आर्थिक मदद दिलाना।
-घर से संबंध रखने वाले महात्माओं को अखाड़े से बाहर करना।
-मठ-मंदिरों के सरकारी अधिग्रहण का विरोध।