साहित्यकार निशा ने कहा- तेजी से बदलते दौर में भी संवेदनाओं के साथ लेखन जरूरी Prayagraj News
साहित्यकार निशा ने कहा कि आज कथाकार समाज के हर परिवर्तन पर अपने विचारों को सजगता के साथ निष्ठा से मंच पर रख सकता है। त्वरित माध्यम से कोई भी समाचार रचना क्षण भर में विश्व के सामने आ जाती हैं। यही बदले दौर का लेखन और साहित्य है।
प्रयागराज, जेएनएन। जग हमेशा से ही परिवर्तनशील रहा है। ऐसा होना भी चाहिए, क्योंकि वैज्ञानिक तौर पर नए अनुसंधान जीवन शैली ही बदल देते हैं। यह कहना है साहित्यकार निशा 'अतुल्य' का। वह कहती हैं कि कथाकार पहले सोचते रहते थे। एक कथानक पूरा करने में लंबा समय लगता था। कलम की स्याही और पृष्ठ भरना फिर उन्हेंं व्यवस्थित करना बड़ा कठिन होता था। अब परिवर्तन की आंधी चल रही है। इसमें तेजी से लिखना मिटाना फिर लिखना और विषय पर कथानक को प्रस्तुत करना आसान हो गया है।
बोलीं, यही बदले दौर का लेखन और साहित्य है
उन्हाेंने कहा कि आज बहुत से ऐसे एप हैं, जो आपकी रचनाओं को पूर्ण सुरक्षित रखते हैं। कहा कि आज कथाकार समाज के हर परिवर्तन पर अपने विचारों को सजगता के साथ निष्ठा से मंच पर रख सकता है। त्वरित माध्यम से कोई भी समाचार, रचना क्षण भर में विश्व के सामने आ जाती हैं। यही बदले दौर का लेखन और साहित्य है। यह जरूर है कि कई बार इसमें संवेदनाएं गुम सी हो जाती हैं। नए साहित्यकारों को इस बात को समझना होगा कि संवेदना शून्यता न आने पाए। बिना संवेदना के लेखन का कोई औचित्य नहीं होता है।
तेजी से बदली है लेखन शैली
साहित्यकार निशा 'अतुल्य' कहती हैं कि आज कथाकार के लिखने की शैली भी बदली है। मुखरता भी बढ़ी है। समाज का अपने परिवेश को छोड़ कर दूसरे का अंधानुकरण परिवर्तनशीलता को ही दिखाता है। एक श्रेष्ठ रचनाकार वही है जो अपने विवेक से समाज को जगाने का सामर्थ रखे और लेखनी भी चलाता रहे।