Magh Mela-2020 : आप कल्पवास करने संगम क्षेत्र में तो आएंगे ही, इन चूल्हे को लेना भूलिएगा नहीं Prayagraj News

एक माह तक संगम की रेती पर लगने वाले तंबुओं के नगर में कल्‍पवास करने वाले और साधु-संतों में मिट्टी के चूल्‍हे की अधिक मांग रहती है। इसे दिन-रात एक कर महिलाएं तैयार कर रही हैं।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Publish:Fri, 22 Nov 2019 10:47 AM (IST) Updated:Fri, 22 Nov 2019 10:47 AM (IST)
Magh Mela-2020 : आप कल्पवास करने संगम क्षेत्र में तो आएंगे ही, इन चूल्हे को लेना भूलिएगा नहीं Prayagraj News
Magh Mela-2020 : आप कल्पवास करने संगम क्षेत्र में तो आएंगे ही, इन चूल्हे को लेना भूलिएगा नहीं Prayagraj News

प्रयागराज, [ज्ञानेंद्र सिंह]। संगम की रेती की अद्भुत महिमा है। बिना चिट्ठी पत्री के ही सबको खबर हो गई है कि माघ मेला लगने वाला है। गांव-गिरांव में कल्पवासी कल्पवास का ताना बाना बुनने लगे हैैं तो प्रशासन उनके लिए संगम क्षेत्र में पांटून पुल, टेंट नगरी सहित अन्य व्यवस्थाएं करने में जुट गया है। कल्पवासियों का कल्पवास पूरी सुचिता और शुद्धता के साथ पूर्ण हो, इसके लिए दारागंज में गंगा किनारे की बस्ती में मिट्टी के चूल्हे तैयार कर रहीं महिलाएं कह रही हैैं कि आइए कल्पवास कीजिए, आपके लिए चूल्हे तैयार हैैं।

कल्पवासियों व साधु-संतों की पहली पसंद है मिट्टी के चूल्हे

तंबुओं के नगर में एक माह कल्पवास करने वालों के टेंट में वैसे तो गैस सिलिंडर के प्रयोग होने लगे हैैं, मगर अब भी ऐसे कल्पवासी और साधु-संत हैैं, जो मिट्टी के चूल्हे पर बना भोजन ही ग्रहण करते हैैं। संत स्वामीनाथ कहते हैैं कि कल्पवास में शुद्धता को पहली प्राथमिकता माना जाता है। इसके लिए मिट्टी के बने चूल्हे और गोबर के बने उपले शुद्धता की कसौटी पर खरे माने जाते हैं। यह बात वर्षों से गंगा तट पर मिट्टïी का चूल्हा तैयार करने वाली इन महिलाओं को भली भांति पता है। इसीलिए वह कल्पवास का समय आने पर बिना किसी आर्डर के दो माह पहले से यह काम शुरू कर देती हैैं। 

कोमल 60 वर्षों से कल्पवासियों के लिए बना रही हैं चूल्हा

लगभग 60 वर्ष से चूल्हा और गोरसी (अंगीठी जैसा) बनाने वाली कोमल निषाद कहती हैैं कि वह अब भी रोज 40-50 चूल्हे बना लेती हैैं। इस साल वह तीन हजार चूल्हे बनाएंगी। पिछले साल कुंभ के दौरान उन्होंने छह हजार चूल्हे अकेले बनाए थे। इसी तरह रन्नो निषाद, किरन, रज्जो, राधिका, विभा कहती हैैं कि वह हर साल करीब चार हजार चूल्हे बनाती हैैं। इस बार भी बना रही हैैं।

सिर्फ कमाई नहीं, आस्था का भी विषय है

मिट्टïी का चूल्हा बनाने में व्यस्त विजया निषाद कहती हैैं कि यह सिर्फ कमाई के लिए ही नहीं, बल्कि उन आस्थावानों के लिए भी कार्य है जो गंगा की मिट्टी के चूल्हे पर ही बनाया ग्रहण करते हैैं। इस कारण हम सब वर्षों से इस परंपरा को संजोए हैैं और चूल्हे, गोरसी बनाते हैैं। यही नहीं, उपली पाथने का भी काम करती हैैं। यह उपली ठंड में कल्पवासी गोरसी में जलाते हैैं। गोरसी में उपली जलाकर हाथ-पैर सेंकने की कड़ाके की सर्दी में आवश्यकता पड़ती है।

चूल्हे और गोबर के उपले बनाने में महिलाएं व्‍यस्‍त

सुबह से ही चूल्हा बनाने में जुटती हैैं दारागंज में दशाश्वमेघ घाट के आसपास और शास्त्री पुल के नीचे के किनारों पर रहने वाली महिलाएं इन दिनों मिट्टी के चूल्हे और गोबर के उपले पाथने यानी बनाने में व्यस्त हैं। सुबह से ही कोई गंगा से मिट्टी लाता है और उसे दुरुस्त करता है तो कोई चूल्हा बनाता है। कोई चूल्हे, गोरसी और उपली को सुखाने में जुटा है। माघमेला ऐसे लोगों के लिए रोजगार का अवसर भी होता है।

गो और गंगा का होता है अंश

लगभग 40 वर्षों से इस काम में जुटी राजवंती निषाद ने बताया कि चूल्हे की मिट्टी में गाय के गोबर का भी प्रयोग होता है जिससे गो और गंगा का अंश इस चूल्हे में पहुंच जाता है। चूल्हा गंगा की चिकनी और काली मिट्टी से तैयार किया जाता है और उसके बाद इस पर पीली मिट्टी का लेप लगाकर सुखाया जाता है। उन्होंने चूल्हे की खासियत बताई कि ये गरम होने के बाद चटकते नहीं।

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