32 साल चला मुकदमा, सजा भी हो गई, अब इलाहाबाद हाई कोर्ट से निर्दोष करार, जानें पूरा मामला...

हाई कोर्ट ने कहा कि यह साक्ष्य नहीं है कि मृतका को जलाते समय आरोपित को उसके जहर खाकर मरने की जानकारी थी। अभियोजन आरोपों को संदेह से परे साबित करने में नाकाम रहा है इसलिए आरोपित विजय को निर्दोष करार दिया जाता है।

By Umesh Kumar TiwariEdited By: Publish:Fri, 22 Jan 2021 08:33 PM (IST) Updated:Sat, 23 Jan 2021 01:01 AM (IST)
32 साल चला मुकदमा, सजा भी हो गई, अब इलाहाबाद हाई कोर्ट से निर्दोष करार, जानें पूरा मामला...
उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले के विजय कुमार को 32 साल बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट से न्याय मिला है।

प्रयागराज, जेएनएन। उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले के दन्नाहर निवासी विजय कुमार को 32 साल बाद न्याय मिला है। विजय पर जहर खाकर आत्महत्या करने वाली पड़ोसी की विवाहित महिला का शव जलाने और साक्ष्य नष्ट करने का आरोप था, सेशन कोर्ट से उन्हें महज एक साल की सजा मिली थी। इस मामले में मृतका के पति समेत अन्य चारों आरोपितों की मुकदमा विचाराधीन होने के दौरान मौत हो चुकी है। आरोपित विजय कुमार को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने निर्दोष करार दिया है। वह पहले से जमानत पर हैं। कोर्ट ने अन्य आदेश न देते हुए सजा को ही रद कर दिया है।

यह आदेश न्यायमूर्ति राजवीर सिंह ने सोबरन व अन्य की आपराधिक अपील को स्वीकार करते हुए दिया है। अपील पर न्यायमित्र राधेश्याम यादव ने बहस की। मामले के अनुसार सर्वेश कुमारी का विवाह मैनपुरी जिले के दन्नाहर निवासी मातादीन के साथ हुआ था। विवाह के दो वर्ष ही हुए थे कि पति ने उसे प्रताडि़त करना शुरू किया। 17 सितंबर, 1986 को सर्वेश ने जहर खाकर आत्महत्या कर ली थी।

ससुराल वालों ने इसकी सूचना पुलिस को दिए बिना ही शव को कहीं ले जाकर जला दिया। सर्वेश की भतीजी उसी गांव में ब्याही थी, उसकी सूचना पर पिता राम सिंह दन्नाहर पहुंचे। ससुराल में पुत्री का शव न मिलने पर उन्होंने थाने में नामजद मुकदमा दर्ज कराया।

सेशन कोर्ट ने आठ जनवरी, 1988 को पति मातादीन को पत्नी का मारने, शव जलाने और साक्ष्य नष्ट करने का आरोपी करार देते हुए 10 साल की सजा सुनाई। इसके अलावा परिजन हरीदास, छेदालाल, सोबरन व पड़ोसी विजय कुमार को एक-एक साल की सजा सुनाई गई। आरोपितों ने सेशन कोर्ट के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी। मुकदमा लंबा चला और इस दौरान आरोपित पति मातादीन सहित अन्य चारों की मौत हो गई। केवल पड़ोसी विजय कुमार जीवित थे, जो जमानत पर थे।

हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि यह साक्ष्य नहीं है कि मृतका को जलाते समय आरोपित को उसके जहर खाकर मरने की जानकारी थी। अभियोजन आरोपों को संदेह से परे साबित करने में नाकाम रहा है इसलिए आरोपित विजय कुमार को निर्दोष करार दिया जाता है।

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