MP विश्वविद्यालय के कुलपति बाेले- समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में राष्ट्रीय शिक्षा नीति सहायक
प्रो. राजकुमार आचार्य ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के राष्ट्रीय सेवा योजना की ओर से आयोजित वेबिनार में सामाजिक सदभावना आवश्यकता एवं महत्व विषय पर विचार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति भी समाज में सकारात्मक बदला लाने में सहायक होगी।
प्रयागराज, जागरण संवाददाता। गांव, मोहल्ले और नगर तक विस्तृत हमारी मानवीय भावना अब केवल अपने परिवार तक सीमित हो गई है। इस प्रवृत्ति में बदलाव जरूरी है। हम जिस देश के निवासी हैं, वहां असद वृत्तियों की कभी विजय नहीं होती बल्कि सदवृत्तियां ही जीतती हैं। ऐसा हो भी क्यों न, त्याग जिस देश का आदर्श हो, वहां नकारात्मक प्रवृत्ति जीत भी नहीं सकती। यह कहना है अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय, मध्य प्रदेश के कुलपति प्रो. राजकुमार आचार्य का।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय का वेबिनार
प्रो. राजकुमार आचार्य ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के राष्ट्रीय सेवा योजना की ओर से आयोजित वेबिनार में 'सामाजिक सदभावना : आवश्यकता एवं महत्व' विषय पर विचार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति भी समाज में सकारात्मक बदला लाने में सहायक होगी। सदभावना का नया रूप, मूल्यपरक शिक्षा का नया रूप, इस शिक्षा नीति से खड़ा होगा। समाज में जो कुछ भी श्रेष्ठ हो, हम और हमारे शिक्षक और शिक्षार्थी उसे ग्रहण करें। देश हमें देता है सब कुछ, हम भी तो कुछ देना सीखें।
कर्तव्य का करें पालन, अकर्तव्य काे त्यागें : प्रोफेसर रमेश
श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रमेश कुमार पांडेय ने सहना ववतु सहनौ भुनक्तु, सह वीर्यम करवावहै, के भाव पर जोर दिया। कहा कि असहमति और द्वेष प्राचीन काल में भी रहा होगा लेकिन हमें ईशावास्यमिदं सर्वं यतकिंच जगत्याम जगत के भाव का अनुशीलन करना चाहिए। 18 पुराणों में दो ही वचन व्यास ने निष्कर्ष रूप में कहे हैं। वे वचन हैं परोपकार और परहित की चिंता। सद्भावना ही नहीं समस्त प्रकार की बातों के मूल में परहित भाव ही प्रधान है। हम अपने कर्तव्य का पालन करें, अकर्तव्य का त्याग करें।
बोले, सद्भावना की प्रतिरोधी ताकतों का पराभव करना होगा
उन्होंने कहा कि हमारा कर्तव्य है समाज निर्माण, व्यक्ति निर्माण, राष्ट्र निर्माण। यहां तक कि पशुओं के लिए भी अभय की कामना और प्रार्थना करने वाले लोग हैं हम। हमें यह सोचना चाहिए कि अयोध्या से निकलने वाले 3 लोग राम, सीता, लक्ष्मण कैसे संख्या, शक्ति, पराक्रम, पौरुष और बल में भारी होते गए और अंत में असद का नाश करने में भी समर्थ रहे। यही इस देश की रीति है। सामाजिक सद्भावना की प्रतिरोधी शक्तियों, ताकतों का भी इसी प्रकार से पराभव किया जाना चाहिए।