यह है प्रयागराज का बेली अस्पताल, यहां न्यूरो सर्जन समेत 10 डाक्टरों के पद खाली, निराश लौटते हैं मरीज

गरीबों का दर्द महसूस करना हो तो सिर्फ तेज बहादुर सप्रू चिकित्सालय यानी बेली अस्पताल चले जाइए। जहां काफी दिनों से न्यूरो सर्जन ही नहीं हैं। चेस्ट फिजीशियन तक का अभाव है और ईएनटी यानी नाक-कान-गला रोग के डाक्टर तक की नियुक्ति नहीं हो पा रही है।

By Ankur TripathiEdited By: Publish:Tue, 27 Jul 2021 01:13 PM (IST) Updated:Tue, 27 Jul 2021 01:13 PM (IST)
यह है प्रयागराज का बेली अस्पताल, यहां न्यूरो सर्जन समेत 10 डाक्टरों के पद खाली, निराश लौटते हैं मरीज
सरकारी अस्पताल से लौटकर प्राइवेट अस्पताल में महंगा इलाज कराने की होती है मजबूरी

प्रयागराज, जागरण संवाददाता। जनपद में सभी को स्वास्थ्य सुविधाएं दिए जाने का दावा कागजों पर खूब तंदुरुस्त रहता है। लेकिन गरीब अपनी जमीन और गहने बेचकर प्राइवेट अस्पतालों में महंगा इलाज कराने को मजबूर क्यों रहते हैं इसका जवाब किसी के पास नहीं है। उदासीनता की पराकाष्ठा देखना समझना और गरीबों का दर्द महसूस करना हो तो सिर्फ तेज बहादुर सप्रू चिकित्सालय यानी बेली अस्पताल चले जाइए। जहां काफी दिनों से न्यूरो सर्जन ही नहीं हैं। चेस्ट फिजीशियन तक का अभाव है और ईएनटी यानी नाक-कान-गला रोग के डाक्टर तक की नियुक्ति नहीं हो पा रही है। धरती के भगवान भी दबी जुबान से कहते हैं कि स्वास्थ्य विभाग का तो भगवान ही मालिक है।

अस्पताल का एक्सरे

-डाक्टरों के कुल 38 पद, 10 खाली हैं

-न्यूरो सर्जन, एक पद वह भी खाली

-ईएनटी के दो पद, दोनों ही खाली

-चेस्ट फिजीशियन, एक पद वह भी खाली

-मनोचिकित्सक, एक पद एक माह से खाली

-इमरजेंसी मेडिकल अफसर, सात पद पांच खाली

राहत नहीं, निराशा मिलती है यहां

बेली अस्पताल में अपना कान दिखाने आए ममफोर्डगंज के पंकज गुप्ता को ओपीडी बंद मिली। जब पता चला कि इसके डाक्टर ही नहीं हैं तो उन्हें निराशा हुई। कहा कि कान में दिक्कत काफी दिनों से है। प्राइवेट अस्पताल में इसलिए नहीं गए क्योंकि वहां पैसा बहुत खर्च होता है। सरकारी अस्पताल आए तो यहां डाक्टर ही नहीं हैं।

न्यूरो सर्जरी के लौटा देते हैं मरीज

सामुदायिक या प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में न्यूरो सर्जन न हो तो बात हजम हो सकती है। लेकिन शहर में तीसरे नंबर के बड़े सरकारी अस्पताल बेली, में भी न्यूरो सर्जन नहीं हैं। जबकि अक्सर सड़क दुर्घटनाएं या अन्य हादसों में गंभीर हुए मरीज अस्पताल लाए जाते हैं। इन्हें एसआरएन के लिए रेफर कर दिया जाता है। स्वास्थ्य विभाग के इसी जिले में सहायक निदेशक भी बैठते हैं लेकिन, लाचारी का चश्मा उतारने से हर किसी का परहेज है।

209 बेड का अस्पताल, 100 सक्रिय

बेली अस्पताल प्रयागराज का जिला अस्पताल है। इसमें सामान्य रूप से 209 बेड हैं लेकिन इन दिनों 100 बेड ही सक्रिय रखे गए हैं। बाकी बेड आइसीयू और अन्य आपदा के मरीजों के लिए रिजर्व है।

100 से ज्यादा मरीज देखना आसान नहीं

बेली अस्पताल की बदहाली से यहां के डाक्टर भी परेशान हैं। ओपीडी करने वाले एक डाक्टर को 100 से ज्यादा मरीज देखने पड़ रहे हैं। जबकि मानक 40 मरीज देखने का है। यह हालात तब हैं जब आजकल 500 या अधिकतम 600 मरीजों का पंजीकरण हो रहा है। जबकि बेली अस्पताल में सामान्य तौर पर 1500 से 2000 तक मरीजों का पंजीकरण होता रहा है।

नर्सों के सहारे मरीज बेचारे

बेली अस्पताल के वार्ड में भर्ती मरीजों का दर्द भी कोई जाने तो शायद उन्हें तकलीफ से कुछ राहत मिल जाए। लेकिन डाक्टर ही नहीं तो उनके पास जाए कौन। सर्जिकल और महिला वार्ड में भर्ती मरीजों ने बताया कि डाक्टर नहीं मिलते, कोई राउंड पर नहीं आता। कोई तकलीफ होती है तो ड््यूटी रूम में बैठे पैरामेडिकल स्टाफ को ही बता पाते हैं।

डाक्टरों के लिए भेजा है मांग पत्र

डाक्टरों की काफी कमी है। हम लोगों ने मांग की है। स्वास्थ्य महानिदेशालय लखनऊ को पत्र भेजा है और एडी हेल्थ को भी। चिंता है कि अभी ओपीडी में मरीज कम ही आ रहे हैं, पंजीकरण की संख्या 1500 से ज्यादा हो गई तो क्या होगा। मैनेज करना काफी मुश्किल हो जाएगा।

डा. किरन मलिक, सीएमएस बेली अस्पताल

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