ये हैं प्रयागराज की समर्पित नर्स, हाथ में छाले पड़ गए, फिर भी करती रहीं मरीजों की सेवा

अस्पतालों में डॉक्टर और नर्स कोविड मरीजों के बीच खुद को खतरे में डालकर दूसरों की जान बचाने में रात-दिन सेवारत रहे। ऐसे भी डॉक्टर और नर्स मिले जिन्हें मरीजों की सेवा के आगे अपनी सुधि नहीं रही। एक नर्स ऐसी भी रहीं जिनके हाथ में छाले पड़ गए थे

By Ankur TripathiEdited By: Publish:Sun, 13 Jun 2021 07:00 AM (IST) Updated:Sun, 13 Jun 2021 07:00 AM (IST)
ये हैं प्रयागराज की समर्पित नर्स, हाथ में छाले पड़ गए, फिर भी करती रहीं मरीजों की सेवा
एसआरएन में काम करते हुए अब न कोरोना से डर लगता है न मरीजों की सेवा से परहेज है।

प्रयागराज, जेएनएन। अप्रैल 2020 से जून 2021। यानी तकरीबन सवा साल में कोरोना की पहली लहर और अब दूसरी लहर में जब लोग खुद की जान बचाने के लिए जूझ रहे थे तब अस्पतालों में डॉक्टर और नर्स कोविड मरीजों के बीच खुद को खतरे में डालकर दूसरों की जान बचाने में रात-दिन सेवारत रहे। ऐसे भी डॉक्टर और नर्स मिले जिन्हें मरीजों की सेवा के आगे अपनी सुधि नहीं रही। एक नर्स ऐसी भी रहीं जिनके हाथ में छाले पड़ गए थे लेकिन उन्होंने उफ नहीं की और पूरे समर्पण के साथ काम करती रहीं।

लोगों की मौत होते देखते हैं तो सिहरन हो जाती

एसआरएन अस्पताल की स्टाफ नर्स आकांक्षा डैनेल कहती हैं कि कोविड वार्ड में मेरी पहली ड्यूटी मई 2020 में लगी थी। शुरुआती दिनों में काफी डर लगा था। कभी-कभी तो घर वालों से बात कर मैं भावुक भी हो जाती थी लेकिन, फिर हिम्मत जुटाई और कोरोना संक्रमित मरीजों के बीच जाकर उनकी सेवा करने की बात मन में ठान लिया। वार्ड में जितनी बार मरीजों या अन्य किसी सामान को छूते थे तो उसके ठीक बाद हथेली में सैनिटाइजर लगाते थे। इससे हाथ में छाले भी पड़ जाते थे। मगर काम तो करना ही था, धीरे-धीरे आदत पड़ गई। अब छठवीं बार कोविड ड्यूटी लगी है। हर ड्यूटी में मेरे लिए कोई न कोई चुनौती रही। कभी मरीज को पानी पिलाना, दवा खिलाना तो कभी बाहर आ जा रहे दूसरे स्टाफ से भी सुरक्षित बचे रहने की चुनौती थी। कई लोगों की मौत होते देखते हैं तो मन में सिहरन हो जाती है। वार्ड में टीम बनाकर हम लोग काम करते हैं। घर आते हैं तो कम से कम डेढ़ घंटे कपड़े धुलने, स्नान करने में लग जाता है। इसके बाद ही परिवार से मिलना होता है। ढाई साल हो चुके हैं एसआरएन में काम करते हुए। अब न कोरोना से कोई डर लगता है न मरीजों की सेवा से कोई परहेज है।

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