Death anniversary of Firaq Gorakhpuri : निराला था बेमिसाल शायर का व्यक्तित्व, निर्धन और बीमार लोगों की मदद के लिए रहते थे तत्पर
गोरखपुरी कहलाने वाले रघुपति सहाय फिराक समय के साथ इलाहाबादी (अब प्रयागराज) हो गए थे। उनका अधिकांश समय इसी शहर में गुजरा। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में 1930 से 1958 तक वे अंग्रेजी के प्राध्यापक रहे थे। उनका व्यक्तित्व निराला था। नेहरू परिवार से उनका गहरा संबंध था।
प्रयागराज, जेएनएन। गोरखपुरी कहलाने वाले रघुपति सहाय फिराक समय के साथ इलाहाबादी (अब प्रयागराज) हो गए थे। उनका अधिकांश समय इसी शहर में गुजरा। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में 1930 से 1958 तक वे अंग्रेजी के प्राध्यापक रहे थे। उनका व्यक्तित्व निराला था। नेहरू परिवार से उनका गहरा संबंध था। इंदिरा गांधी को अपनी बेटी की तरह मानते थे और अकसर पत्र लिखकर सलाह देते थे। निर्धन और बीमार को देखकर वे द्रवित हो जाते थे। एक बार रेल से प्रतापगढ़ जाते समय उन्होंने स्टेशन पर एक भिखारिन तथा उसके बच्चे को ठंड में ठिठुरते देखा तो अपने गरम कपड़े और खाने का सामान उसे दे दिया। तीन मार्च को पुण्यतिथि पर फिराक को प्रयागराज के लोग और प्रशंसक शिद्दत से याद कर रहे हैं।
बिखरे बाल और हाथ में रहती थी छड़ी
साहित्यकार अनुपम परिहार बताते हैं कि फिराक गोरखपुरी अलग से दिखते थे। बिखरे बाल, एक हाथ में सिगरेट, दूसरे हाथ में छड़ी, खुले हुए शेरवानी के बटन, लटकाया हुआ जारबंद, ढीला ढाला पैजामा उनकी पहचान थी। गहरा प्रभाव छोड़े जाने वाली बड़ी-बड़ी आंखों वाले फिराक साहब जब सड़क पर पैदल या रिक्शे पर निकलते थे तो सामने पड़ने वाला लगभग हर आदमी उनके प्रति श्रद्धा प्रकट करता दिखाई देता।
डॉ.ईश्वरी प्रसाद थे उनके पड़ोसी
अनुपम परिहार बताते हैं कि फिराक गोरखपुरी के घर के पास ख्यातिप्राप्त इतिहासकार डॉ.ईश्वरी प्रसाद रहते थे। दोनों अपने विषय के प्रकांड विद्वान थे। इसके अतिरिक्त दोनों में कोई आदत नहीं मिलती थी। डॉ.ईश्वरी प्रसाद उनसे आठ वर्ष बड़े थे। वे फिराक साहब की विद्वता का सम्मान करते थे। फिराक गोरखपुरी अपने स्वाभाविक लहजे में ईश्वरी प्रसाद की आलोचना करते थे पर सामने पड़ने पर ईश्वरी प्रसाद को बड़े सम्मान से पंडित जी कहते थे। ईश्वरी प्रसाद भी उन्हें फिराक साहब कहते थे।
दिल्ली में हुआ था निधन
फिराक गोरखपुरी का निधन दिल्ली में तीन मार्च 1982 में हुआ था। फिराक साहब का शव जब दिल्ली से प्रयागराज लाकर उनके बैंक रोड स्थित आवास पर रखा गया तो उस समय 94 साल के ईश्वरी प्रसाद अपने अनोखे पड़ोसी का अंतिम दर्शन करने छड़ी टेकते हुए पहुंच गए थे। वे गंभीर मुद्रा में थोड़ी देर खड़े रहे फिर चले आए। 28 वर्ष तक फिराक गोरखपुरी के सबसे नजदीक रहने वाले रमेशचंद्र द्विवेदी ने उनपर एक किताब 'फिराक साहब लिखी है। किताब में फिराक के गमों के सैलाब, बच्चों जैसी चपलता, विद्वता और चिंतन की गहराई तथा उनकी बेहिसाब मजबूरियों का पता चलता है।