सुख-समृद्धि का आशीष देकर विदा हुए पुरखे

पितृमोक्ष अमावस्या पर बुधवार को संगम तीरे का आस्था की अद्भुत छटा दिखी।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 07 Oct 2021 01:01 AM (IST) Updated:Thu, 07 Oct 2021 01:01 AM (IST)
सुख-समृद्धि का आशीष देकर विदा हुए पुरखे
सुख-समृद्धि का आशीष देकर विदा हुए पुरखे

जागरण संवाददाता, प्रयागराज : पितृमोक्ष अमावस्या पर बुधवार को संगम तीरे का आस्था की अद्भुत छटा दिखी। पूर्वजों के प्रति समर्पण व श्रद्धाभाव से ओतप्रोत लोग दिन भर पहुंचते रहे। पिंडदान, तर्पण व श्राद्ध कर्म से वातावरण भक्तिमय रहा। वंशजों को सुख-समृद्धि का आशीष देकर पितर (पूर्वज) भी विदा हो गए। अब अगले वर्ष पितृपक्ष पर पुन: उनका आगमन होगा।

भोपाल से आए मोहन लाल, दिल्ली के विवेक शर्मा, लखनऊ के राजेश्वर जैसे श्रद्धालुओं ने घाट पर तीर्थपुरोहितों के मंत्रोच्चार के बीच श्राद्ध कर्म संपादित कर अपने पुरखों का भावपूर्ण स्मरण किया। इस कर्मकांड के समय पूर्वजों को याद कर उनकी आखें नम हो गई। पितृपक्ष में दिवंगत पूर्वजों की आत्मा की शाति के लिए पिंडदान व तर्पण का विधान है। आश्विन कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से पितृपक्ष आरंभ हुआ था। संगम तट पर पिंडदान, तर्पण का विशेष महत्व है। प्रयाग धर्मसंघ के अध्यक्ष राजेंद्र पालीवाल बताते हैं कि प्रयाग तीर्थराज है। जब तक यहां तर्पण व पिंडदान नहीं किया जाता, पूर्वजों की आत्मा को तृप्ति नहीं मिलती। एक लोकोक्ति यह भी है कि 'गया पिंडे, प्रयाग मुंडे।' अर्थात गया में पिंडदान और प्रयागराज में सिर मुड़वाना श्रेष्ठ कर्म है। यहा पिंडदान तर्पण किए जाने से पूर्वज प्रसन्न होकर अपने वंशजों को सुख-समृद्धि का आशीष देते हैं।

स्नान कर किया पिंडदान:त्रिवेणी में डुबकी लगाने के बाद पितरों का ध्यान कर जलांजलि अर्पित की गई। फिर विधि-विधान से पिंडदान तर्पण किया। ब्राह्माण, गाय, कुत्ता व कौआ को भोजन कराया। तीर्थ पुरोहितों को यथा साम‌र्थ्य दक्षिणा दी। अधिकतर लोग सपरिवार आए थे। इसका उद्देश्य परिवार के सदस्यों, विशेष कर बच्चों को संस्कार व संस्कृति से जोड़ना था।

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