स्वतंत्रता आदोलन में स्वदेशी की पहचान थी मऊआइमा की धोती

कभी मऊआइमा की धोती स्वदेशी की पहचान हुआ करती थी लेकिन समय के साथ इस पर ग्रहण लग गया। अब बुनकर परेशानी में हैं।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 06 Aug 2020 09:00 PM (IST) Updated:Fri, 07 Aug 2020 06:04 AM (IST)
स्वतंत्रता आदोलन में स्वदेशी की पहचान थी मऊआइमा की धोती
स्वतंत्रता आदोलन में स्वदेशी की पहचान थी मऊआइमा की धोती

सईद अहमद अंसारी, तिलई बाजार (प्रयागराज): किसी दौर में प्रयागराज (पूर्ववर्ती इलाहाबाद) के मऊआइमा के हथकरघा उद्योग की पहचान राष्ट्रीय स्तर पर थी। यहां बनने वाली धोती स्वतंत्रता आंदोलन में स्वदेशी की पहचान थी। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी यहां तैयार की गई साड़ी उपहार स्वरूप भेट की गई थी। अब उन हथकरघों की खटर पटर बंद है। फिलहाल पावरलूम ही चलते हैं। बुजुर्ग बुनकरों के पास यादों की पोटली भर है।

राष्ट्रीय हस्तकरघा दिवस की पूर्व संध्या पर पुरानी यादों को टटोला गया तो तमाम बातें सामने आईं। स्वदेशी आदोलन से पहले और बाद में मऊआइमा में बुनकरों के हाथ बनी धोती और साड़ियों की सप्लाई पूरे देश में थी। मऊआइमा का उत्पाद भी वैसे ही ख्याति लब्ध था जैसे बनारसी साड़ी के लिए वाराणसी और काचीपुरम सिल्क साड़ी के लिए तमिलनाडु। तीन दशक पूर्व तक कस्बे की हर गली के लगभग सभी घर में हथकरघे थे। परिवार के पुरुष साड़ी और गमछों को तैयार करते थे तो महिलाएं धोंठे में लगने वाले धागों को चरखे पर काडी तैयार करने में जुटी रहती थी। बच्चे धागों में माडी लगाने की जिम्मेदारी संभालते थे। एक हथकरघे पर सुबह से शाम तक बुनाई के बाद पाच से छह साड़ी आसानी से तैयार हो जाया करती थी। वर्ष 1980 तक यह सुनहरा दौर रहा। कस्बे में वाराणसी, कानपुर, मथुरा, दिल्ली आदि शहरों के व्यापारियों का जमावड़ा रहता था। वर्ष 1985 के बाद सूत व कपास की कीमतों में हुई बेतहाशा वृद्धि से हैंडलूम कारोबार सिमटने लगा। कुछ बुनकर पावरलूम से जुड़ गए और कुछ परिवार यहां से पलायन कर भिवंडी, नासिक, मालेगाव, धुलिया, मुम्बई आदि शहरों में बस गए।

नहीं दिखती अब पुरानी क्वालिटी: आजादी के पहले साड़ियों की जो क्वालिटी थी, आज वैसी ढूंढ़ने पर भी नहीं मिलतीं। खूबसूरत बुनाई और कढ़ाई नहीं हो पाती। जानकार मानते हैं कि हथकरघे से बने कपड़े लोकप्रिय हो सकते हैं बशर्ते उसकी मार्केटिंग हो। बॉलीवुड स्टार अनुष्का शर्मा ने अपने रिसेप्शन में जो बनारसी साड़ी पहनी थी उसके डिजाइनर को जानने की उत्सुकता काफी दिनों तक रही थी लोगों में।

इंदिरा गाधी को उपहार में दी साड़ी: मऊआइमा कस्बे के बुजुर्ग बुनकर बताते हैं कि वर्ष 1982 में कस्बे से होकर प्रतापगढ़ जा रही पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का स्वागत चौराहे पर पूर्व मंत्री व सासद स्वर्गीय मोहम्मद अमीन अंसारी के नेतृत्व में हुआ। तब यहा के बुनकरों ने अपने हाथ से बुनी साड़ी उन्हें उपहार में भेंट की, इस पर वह काफी खुश हुईं। कहते हैं बुजुर्ग बुनकर

जब कस्बे में हैंडलूम चलते थे तो हर तरफ रौनक रहती थी। हम सुबह नाश्ता करके बैठते थे और शाम चार बजे तक पाच साड़ी तैयार कर बेफिक्र होकर घूमने निकल जाते थे।

- नन्हें मुकादम, निवासी मोहल्ला कोट चार दशक पूर्व घर में दो करघे लगे थे। एक पर मैं काम करता था दूसरी पर बेगम। खुशगवार जिंदगी जी रहे थे हम, लेकिन कारोबार खत्म होते ही बरकत चली गयी।

- मोहम्मद हबीब, मऊआइमा

---------- जब तक कस्बे में हथकरघा था तब तक हर घर में खुशहाली का माहौल था। इस कारोबार में पूरा परिवार जुड़ा रहता था। अब तो यह बीते दिनों की बात हो चली है।

मोहम्मद साबिर, कोयली गढ़ी मोहल्ला - तत्कालीन सरकारों ने कोई कारगर कदम नहीं उठाया। इसलिए पहले हैंडलूम कारोबार ने दम तोड़ा और अब पावरलूम का जनाजा निकलने वाला है।

अब्दुल हमीद, मोहल्ला महत्वना

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