प्रयागराज में एसआरएन अस्पताल कभी हुआ करती थी जेल, अंग्रेजों के जमाने में पोस्टमार्टम हाउस में दी जाती थी फांसी

इतिहासकार प्रो. योगेश्वर तिवारी के अनुसार सन 1819 के आसपास बनी इस जेल में दो दर्जन से अधिक बैरकें थीं। देश की आजादी के बाद जेल को सुधारगृह में तब्दील कर दिया गया था। सन् 1950 में मलाका जेल को नैनी में स्थानांतरित कर दिया गया।

By Rajneesh MishraEdited By: Publish:Sat, 13 Feb 2021 02:27 PM (IST) Updated:Sat, 13 Feb 2021 02:27 PM (IST)
प्रयागराज में एसआरएन अस्पताल कभी हुआ करती थी जेल, अंग्रेजों के जमाने में पोस्टमार्टम हाउस में दी जाती थी फांसी
स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल परिसर में कभी जेल हुआ करती थी जहां क्रांतिकारियों को रखा जाता था।

प्रयागराज, जेएनएन। स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल परिसर में कभी जेल हुआ करती थी जहां क्रांतिकारियों को रखा जाता था। यातना देने के साथ ही उन्हें फांसी पर लटकाया जाता था। अंग्रेजों के जमाने की जेल इतिहास बन चुकी है। जेल की जगह पर बच्चों के लिए  अस्पताल बनाने का फैसला लिया गया लेकिन चार साल बीत गए अभी तक अस्पताल का भवन बन नहीं पाया है।

अंग्रेजों ने 1819 के आसपास बनवाई थी जेल

इतिहासकार प्रो. योगेश्वर तिवारी के अनुसार सन 1819 के आसपास बनी इस जेल में दो दर्जन से अधिक बैरकें थीं। देश की आजादी के बाद जेल को सुधारगृह में तब्दील कर दिया गया था। सन् 1950 में मलाका जेल को नैनी में स्थानांतरित कर दिया गया। जेल के स्थानांतरण के बाद काफी दिनों तक यहां पर बंगाल से आए शरणार्थियों को रखा जाता था। कुछ समय के बाद यहां पर गवर्नमेंट प्रेस बन गया। बाद में रानी बोतिया ने जमीन को खरीद लिया था। मलाका जेल के नाम से ख्यात जेल में क्रांतिकारी ठाकुर रोशन सिंह को फांसी दी गई थी। उनकी प्रतिमा स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल में आज भी मेनगेट के पास मौजूद है। शाहजहांपुर में जन्मे शहीद रोशन सिंह को काकोरी कांड में अंग्रेजों ने अभियुक्त बनाया था।

2016 में पूरी तरह खत्म हो गया मलाका जेल का वजूद

एलनगंज में स्थित सरोजिनी नायडू बाल चिकित्सालय को वर्ष 2016 में स्वरूपरानी नेहरू चिकित्सालय परिसर में स्थानांतरित करने के लिए शासन ने हरी झंडी दिखाई तो ध्वस्तीकरण का कार्य शुरू हुआ और जेल के नाम पर बची तीनों बैरकों को गिरा दिया गया। इसी के साथ मलाका जेल का वजूद खत्म हो गया। विरासत के नाम पर अब सिर्फ शहीद रोशन सिंह की प्रतिमा रह गई है जिसे 1972 में स्वरूपरानी नेहरू चिकित्सालय का भवन बनवाने वाले ठेकेदार जगदेव दास यादव की तरफ से स्थापित कराया गया था।

वर्तमान पोस्टमार्टम हाउस तब हुआ करता था फांसी घर

अस्पताल के समीप नार्थ मलाका के रहने वाले अनुराग यादव बताते हैं कि स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल के प्रवेश द्वार से लेकर सीएवी इंटर कॉलेज तक जेल की सीमा थी। पोस्टमार्टम हाउस तब फांसी घर हुआ करता था। रोशन सिंह को भी यहीं पर फांसी दी गई थी। प्रो. तिवारी कहते हैं कि जेल में कई कुएं थे। जिन्हेंं फासी दी जाती थी, उन्हेंं छोटी-छोटी कोठरियों में रखा जाता था। मेडिकल कालेज के प्रधानाचार्य डा. एसपी सिंह के अनुसार अस्पताल के निर्माण का काम चल रहा है। भवन बन जाने के बाद सरोजिनी नायडू बाल चिकित्सालय को शिफ्ट किया जाएगा।

chat bot
आपका साथी