अयोध्‍या श्रीराम मंदिर आंदोलन में विहिप के धर्माचार्य संपर्क प्रमुख शंभूनाथ ने सक्रिय भूमिका निभाई थी

उसके बाद नैनी स्थित महर्षि महेश योगी आश्रम में चार लाख श्रीराम की प्रतिमाओं का निर्माण शुरू हुआ। उसे सभी जगहों पर भेजा गया। प्रांत नगर व ग्राम स्तर पर श्रीराम की प्रतिमाओं का वितरण होने से हिंदू समाज में जागृति आई। फिर से श्रीराम मंदिर आंदोलन को गति मिली।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Publish:Sat, 12 Jun 2021 02:13 PM (IST) Updated:Sat, 12 Jun 2021 03:31 PM (IST)
अयोध्‍या श्रीराम मंदिर आंदोलन में विहिप के धर्माचार्य संपर्क प्रमुख शंभूनाथ ने सक्रिय भूमिका निभाई थी
आरएसएस प्रचारक व विहिप के धर्माचार्य संपर्क प्रमुख शंभूनाथ हिंदू समाज को एकता के सूत्र में पिरोने का काम किया।

प्रयागराज, जेएनएन। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक व विश्व हिंदू परिषद के धर्माचार्य संपर्क प्रमुख का दायित्व निभाने वाले शंभूनाथ ने हिंदू समाज को जागृत करने में विशेष भूमिका निभाई थी। खासकर श्रीराम मंदिर आंदोलन के लिए निरंतर सक्रिय रहे। 2007 में प्रयागराज में आयोजित धर्म संसद में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्हीं के सुझाव से देशभर में श्रीराम की प्रतिमा वितरण का कार्यक्रम तय हुआ। शंभूनाथ का शुक्रवार को निधन हो गया था। 

श्रीराम मंदिर निर्माण कराना सभी का था संकल्‍प : सुनील

विहिप के प्रांतीय कार्यालय प्रमुख सुनील ने बताया कि अयोध्या में श्रीराम मंदिर का निर्माण कराना सभी का संकल्प और सपना था। उसे पूरा करने के लिए प्रत्येक कार्यकर्ता प्रतिबद्ध था। धर्म संसद में धर्माचार्य संपर्क प्रमुख शंभूनाथ ने ही विचार दिया कि राम नवमी के दिन रामोत्सव मनाया जाए। यह आयोजन देशभर में सामान्य रूप से प्रत्येक हिंदू समाज अपने स्तर से मनाता है। यदि इसे रामोत्सव के रूप में मनाया जाए और इसी दिन श्रीराम की प्रतिमा का वितरण किया जाए तो देश में नई ऊर्जा आएगी। समूचा हिंदू समाज एकता के सूत्र में बंधेगा। इसपर सभी ने सहमति दी।

महर्षि महेश योगी आश्रम में श्रीराम की प्रतिमाओं का निर्माण हुआ था

उसके बाद नैनी स्थित महर्षि महेश योगी आश्रम में चार लाख श्रीराम की प्रतिमाओं का निर्माण शुरू हुआ। उसे सभी जगहों पर भेजा गया। प्रांत, नगर व ग्राम स्तर पर श्रीराम की प्रतिमाओं का वितरण होने से हिंदू समाज में जागृति आई। फिर से श्रीराम मंदिर आंदोलन को गति मिली।

संगठन से नहीं लेते थे कोई खर्च

प्रांतीय कार्यालय प्रमुख सुनील बताते हैं कि धर्माचार्य संपर्क प्रमुख बहुत ही संयमित जीवन जीते थे। वह 2003 से ही सिर्फ एक समय भोजन करते थे। शाम को कुछ भी नहीं खाते थे। मीसा बंदी होने के नाते उन्हें जो पेंशन मिलती थी उसी से अपना पूरा खर्च चलाते थे। संगठन से वह किसी भी तरह का धन नहीं लेते थे। जीवनभर वह हिंदू समाज व संगठन के लिए कार्य करते रहे।

16 माह तक मीसा बंदी रहे

विहिप प्रवक्ता अश्वनी मिश्र ने बताया शंभूनाथ का जन्म 25 मार्च 1950 को प्रयागराज के दारागंज में हुआ था। बाल्यकाल में ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संपर्क में आए और स्वयंसेवक बने। आपातकाल में 16 माह तक कारागार में बंदी रहे। वह मार्च 1977 से 1981 तक शिशु मंदिर में आचार्य रहे। उसके बाद प्रचारक बन गए। संघ में विभिन्न दायित्वों का निर्वहन करते हुए अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े। पूर्वी उत्तर प्रदेश में प्रांत सह संगठन मंत्री, संगठन मंत्री का दायित्व भी उन्होंने निर्वहन किया।

नेपाल राष्ट्र के संगठन मंत्री भी रहे

श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के चरमकाल में 1990 में शंभूनाथ विश्व हिंदू परिषद से जुड़े। यहां काशी प्रांत बजरंग दल के संयोजक बने। 1990 की कारसेवा, जिसमें अशोक सिंहल के सर में चोट आई थी, उस समय शंभूनाथ छाया की तरह उनके साथ रहे। उसके बाद नेपाल राष्ट्र के संगठन मंत्री बनकर गए। वापस आने पर धर्माचार्य संपर्क और वेद विद्यालय का काम देख देखना शुरू किया। तमाम कार्यकर्ताओं के लिए प्रेरणा स्रोत थे।

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