इबादत के साथ दायित्व भी, कोरोना महामारी में फर्ज निभाने के साथ रोजा भी रख रहे प्रयागराज के ये पुलिसवाले

इंस्पेक्टर इफ्तेखार अहमद कहते हैं कि एक रोजा टूट गया तो 60 रोजा रखना पड़ता है। सहरी के बाद न तो पानी पीना है न कुछ खाना है। मगर महामारी और भीषण गर्मी के बीच लोगों को संक्रमण से बचाने से लेकर विभाग के अन्य कार्य करना चुनौती है।

By Ankur TripathiEdited By: Publish:Thu, 06 May 2021 07:25 AM (IST) Updated:Thu, 06 May 2021 07:25 AM (IST)
इबादत के साथ दायित्व भी, कोरोना महामारी में फर्ज निभाने के साथ रोजा भी रख रहे प्रयागराज के ये पुलिसवाले
प्रयागराज में मुस्लिम धर्म से जुड़े पुलिसकर्मी ड्यूटी निभाने के साथ ही रख रहे हैं रोजा भी

प्रयागराज, जेएनएन। रमजान का पाक महीना और कोरोना महामारी को फैलने से रोकने की जिम्मेदारी भी। अल्लाह की इबादत और कठिन ड्यूटी का फर्ज। प्रयागराज में तैनात मुस्लिम धर्म को मानने वाले इंस्पेक्टर और सब इंस्पेक्टर से लेकर कई हेड कांस्टेबल और कांस्टेबल महामारी में इबादत के साथ अपना दायित्व भी बखूबी निभा रहे हैं। वह ड्यूटी की तरह रोजा को भी अपना फर्ज मानते हैं और उसकी कड़ी पाबंदियों का पालन करते हैं। ड्यूटी के वक्त भूल से भी कोई गलत कार्य नहीं हो और रोजा न टूटे, इसके लिए घरवाले भी उनका हौसला बढ़ाते हैं।


धूप में कठिन ड्यूटी मगर रखते हैं रोजा, हौसला बढ़ाते हैं परिवार के लोग
रोजा रखने वाले पुलिसर्किमयों का कहना है कि रोजा की कई कठिन शर्तें हैं, जो पुलिस की नौकरी के दौरान पूरा करना आसान नहीं होता है। शरीर के सभी अंगों का रोजा होता है। जैसे किसी को गलत नजर से न देखना, हाथ से कोई सामान चोरी न करना, न बुरा-भला कहना। मन में गलत विचान नहीं आएं और न तो लालच करें। रमजान के महीने में नेक काम करने होते हैं। ऐसा न होने की दशा में उनका रोजा कबूल नहीं होता है। पिछले 32 साल से पुलिस की नौकरी कर रहे इंस्पेक्टर इफ्तेखार अहमद कहते हैं कि अगर एक रोजा टूट गया तो उसके लिए 60 रोजा रखना पड़ता है। सबसे कठिन काम होता है कि सहरी के बाद न तो पानी पीना है न कुछ खाना है। मगर कोरोना महामारी और भीषण गर्मी के बीच लोगों को संक्रमण से बचाने, कानून-व्यवस्था का पालन करने से लेकर विभाग के अन्य कार्य करना बड़ी चुनौती होती है। पांच वक्त की नमाज की तरह पुलिस की ड्यूटी भी पूरी इमानदारी से निभाते हैं।

जानिए क्या है इनका कहना
ड्यूटी की तरह रोजा भी हमारा फर्ज है। रमजान का महीना इंसान की नेकी को बढ़ाता है। ड्यूटी के दौरान विषम परिस्थिति आने पर भी हम सुन्नत के अनुसार ही कार्य करते हैं।
- इफ्तेखार अहमद, इंस्पेक्टर मुट्ठीगंज

  

कोरोना काल में रोजा रखना बेहद मुश्किल है, लेकिन घरवाले इसके लिए हौसला आफजाई करते हैं। बिना मास्क वालों का चालान काटते वक्त भी रोजा की शर्तों का ध्यान रखते हैं।
- मिर्जा कमालुद्दीन बेग, चौकी इंचार्ज मीरापुर

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