रुपहले पर्दे पर दिखेंगे भूले-भटकों के मसीहा राजाराम
कुंभ और माघ मेलों के दौरान संगम तट पर हजारों भूले-भटकों को को मिलाने वाले राजाराम तिवारी की कहानी अब पर्दे पर नजर आएगी।
जागरण संवाददाता, प्रयागराज : कुंभ और माघ मेलों के दौरान संगम तट पर हजारों भूले-भटकों को मिलाने वाले राजाराम तिवारी का कृतित्व-व्यक्तित्व 'गंगा पुत्र' नामक डाक्यूमेंट्री के जरिए दुनिया देखेगी। इसका प्रदर्शन 22 नवंबर को गोवा में होने वाले अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल के इंडियन पैनोरमा में होगा।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सेंटर फार थिएटर एंड फिल्म में तकनीकी सहायक जयप्रकाश के निर्देशन में 30 मिनट की डाक्यूमेंट्री 'गंगा पुत्र' बनाई गई है। इसे लगभग नौ साल में बनाया गया है। जयप्रकाश कहते हैं कि 2010 में शुरुआत हुई थी और 2019 में काम पूरा हुआ। राजाराम के जीवन पर शोध लगभग दो वर्ष चला। प्रतापगढ़ के रानीगंज तहसील के फतनपुर थाना अंतर्गत गौरा पूरेबदल नंदू का पूरा गाव में 10 अगस्त 1928 को जन्मे राजाराम तिवारी 16 साल की आयु में दोस्तों के साथ कुंभ मेले में आए थे। इसी दौरान उन्हें अपनों से बिछड़ी बुजुर्ग महिला मिली। राजाराम के प्रयासों से वह स्वजनों से मिली। इसके बाद उन्होंने भूले-भटके लोगों को मिलाने का संकल्प लिया और बांध के नीचे 1946 के माघ मेले से भूले भटके शिविर लगाने लगे। वर्ष 2016 तक लगभग 15 लाख भूले-भटके लोगों को उनके स्वजन से मिलवाया। पूर्व केंद्रीय मंत्री स्व. जनेश्वर मिश्र, स्व. सत्यप्रकाश मालवीय ने भी उनके शिविर से जुड़ कर सेवाएं दी थीं। 20 अगस्त 2016 को राजाराम के दिवंगत होने के बाद उनके बेटे उमेश चंद्र तिवारी शिविर संचालित करा रहे हैं।
प्रेरक जीवन से मिली प्रेरणा : जयप्रकाश
निर्देशक जय प्रकाश बताते हैं कि राजाराम तिवारी का जीवन प्रेरक है। इसलिए डाक्यूमेंट्री बनाने की प्रेरणा मिली। उन्होंने बिना स्वार्थ लाखों लोगों को मिलवाया। जयप्रकाश का कहना है कि फिल्म बनाने के लिए उन्होंने कई रातें टेंट में गुजारीं। राजाराम के मित्रों, परिवार के सदस्यों से मुलाकात की।
अमिताभ से हुई बातचीत भी
'गंगा पुत्र' में राजाराम के परिवार के सदस्यों, रिश्तेदार, मित्रों के अलावा महापौर अभिलाषा गुप्ता तथा महानायक अमिताभ बच्चन का साक्षात्कार है। अमिताभ ने उन्हें कौन बनेगा करोड़पति के मंच पर सम्मानित किया था। अभिनेत्री दीया मिर्जा भी उनके शिविर में गई थीं।