Birth Anniversary: विज्ञान की दुनिया में AU के प्रोफेसर कृष्णन ने भारत को दिलाई थी पहचान

हम बात कर रहे हैं 1954 में पद्मभूषण से सम्मानित इलाहाबाद विश्वविद्यालय में भौतिकी विभाग के प्रोफेसर कार्यमाणिवकम श्रीनिवास कृष्णन की। प्रो. केएस कृष्णन का जन्म चार दिसंबर 1898 को तमिलनाडु में तिरुनलवेल्ली जिले के वातरप गांव में हुआ था। कृष्णन की प्रारंभिक शिक्षा श्रीविलिपुत्तूर में हुई।

By Ankur TripathiEdited By: Publish:Sat, 04 Dec 2021 08:30 AM (IST) Updated:Sat, 04 Dec 2021 08:30 AM (IST)
Birth Anniversary: विज्ञान की दुनिया में AU के प्रोफेसर कृष्णन ने भारत को दिलाई थी पहचान
इलाहाबाद विश्वविद्यालय से था प्रोफेसर कार्यमाणिवकम श्रीनिवास कृष्णन का नाता

जन्मतिथि पर विशेष

जन्म : 04 दिसंबर 1898

निधन : 14 जून 1961

गुरुदीप त्रिपाठी, प्रयागराज। बात वर्ष 1920 की है। मद्रास के प्रतिष्ठित प्रेसिडेंसी कालेज आफ साइंस में प्रोफेसर सुब्रह्मण्य अय्यर एमएससी के विद्यार्थियों को पढ़ा रहे थे। उनकी नजर ऐसे बच्चे पर पड़ी, जिसकी उम्र सबसे कम थी। प्रो. अय्यर ने उससे पूछा, ‘क्या तुम इसी कक्षा के विद्यार्थी हो? बच्चे ने हां में जवाब दिया तो वह हैरान हो गए। बाद में पता चला कि यह बच्चा उम्र में भले छोटा है, लेकिन अक्ल में सबसे बड़ा है। इसी बच्चे ने आगे चलकर देश को विज्ञान के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय ख्याति दिलाने में अहम भूमिका निभाई। हम बात कर रहे हैं 1954 में पद्मभूषण से सम्मानित इलाहाबाद विश्वविद्यालय में भौतिकी विभाग के प्रोफेसर कार्यमाणिवकम श्रीनिवास कृष्णन की।

प्रो. केएस कृष्णन का जन्म चार दिसंबर 1898 को तमिलनाडु में तिरुनलवेल्ली जिले के वातरप गांव में हुआ था। कृष्णन की प्रारंभिक शिक्षा श्रीविलिपुत्तूर में हुई। उन्होंने वर्ष 1914-16 में मदुरै स्थित अमरीकन कालेज से 12वीं की पढ़ाई की। इसके बाद मद्रास क्रिश्चियन कालेज से स्नातक की उपाधि हासिल की। 1920 में मद्रास के प्रेसिडेंसी कालेज आफ साइंस में दाखिला लिया। यहां डिमांस्ट्रेटर के पद पर नौकरी भी की। इसके बाद सर सीवी रमन के निर्देशन में स्कैटरिंग आफ लाइट यानी रमन प्रभाव के क्षेत्र में कोलकाता स्थित इंडियन एसोसिएशन फार कल्टीवेशनल साइंस में रहकर शोध किया। फिर 1928 में ढाका विश्वविद्यालय चले गए। वहां 1928 से 1933 तक भौतिकी विभाग में रीडर के पद पर रहे। यहां उन्होंने विषम-चुंबकीय तथा सम-चुंबकीय स्फटिकों के चुंबकीय गुण धर्मों का गहन अध्ययन किया। उनके इस शोध कार्य के लिए मद्रास विश्वविद्यालय ने उन्हें डीएससी की उपाधि प्रदान की। 1933 में वापस कोलकाता विश्वविद्यालय पहुंचे और 19338 तक यहां प्रोफेसर रहे। 1939 में उनकी नियुक्ति इलाहाबाद विश्वविद्यालय में हुई। वह यहां 1947 तक विभागाध्यक्ष समेत कई प्रशासनिक पदों पर भी रहे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में ही उन्होंने प्रकाश के आण्विक विकिरण एवं तरल पदार्थों में एक्स-रे के प्रभाव पर कार्य किया। साथ ही गैसीय अणु और स्फटिकों की चुम्बकीय विषमदैशिकता पर शोध किया। उनका निधन 14 जून 1961 को हुआ।

पंडित नेहरू भी कायल थे

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में भौतिक विज्ञान विभाग के प्रो. केएन उत्तम बताते हैं कि प्रो. कृष्णन पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के व्यक्तिगत विचारधारा से प्रभावित थे। वह समय-समय पर देश की परिस्थितियों और स्थितियों के बारे में उनसे वार्ता कर रहते थे। खासतौर से सामाजिक और आर्थिक समस्याओं के समाधान में विज्ञान-प्रौद्योगिकी की भूमिका क्या हो सकती है। 1947 में जब भारत आजाद हुआ तो भारत सरकार ने उन्हें राष्ट्रीय भौतिक अनुसंधानशाला का पहला निदेशक नियुक्त किया। बाद में वह प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार भी रहे। 1949 में वह भारतीय विज्ञान कांग्रेस के अध्यक्ष बने और भारत में उच्च कोटि की प्रयोगशालाओं को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

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