Premchand Death Anniversary: धुंधली हो रहीं प्रेमचंद की यादें, महान उपन्यासकार की स्मृति संजोने की उठी मांग
Premchand Death Anniversary वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. राजेंद्र कुमार कहते हैं कि प्रेमचंद की प्रयागराज में उपेक्षा कष्टकारी है। यह शहर उनकी कर्मभूमि था यहां उनकी यादें संजोने के लिए सरकार को उचित कदम उठाना चाहिए। उर्दू आलोचक प्रो. अली अहमद फातमी ने उनकी स्मृतियों को संरक्षित करने की आवश्यकता बताई।
प्रयागराज, जागरण संवाददाता। हिंदी साहित्य के शिखर पुरुष महान उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद का प्रयागराज (पुराना इलाहाबाद) से अटूट नाता था। लेखन की शुरुआत उन्होंने यहीं से की थी। 1902 में अध्यापकी ट्रेनिंग के लिए प्रतापगढ़ से प्रयागराज आए थे। यहीं अपना पहला उपन्यास 'असरारे मआबि' लिखना शुरू किया। उसे 'आवाजे खल्क' नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया।
प्रयागराज में मूर्ति लगाने की मांग नहीं पूरी हुई
प्रेमचंद तब धनपत राय उर्फ नवाबराय अलाहाबादी के नाम से लिखते थे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रेमचंद ने 1919 में अंग्रेजी, इतिहास व फारसी विषय में बीए की डिग्री हासिल की। हिंदुस्तानी एकेडेमी का 1927 में गठन हुआ तो प्रेमचंद को प्रथम कार्यकारिणी परिषद में रखा गया। अफसोस कि इसी शहर से उनका नाता टूटता जा रहा है। रचनाकार प्रेमचंद के नाम से साहित्यिक संस्थान बनाने व सार्वजनिक स्थल पर उनकी मूर्ति लगाने की मांग लंबे समय से कर रहे हैं, जो अब तक पूरी नहीं हुई।
प्रेमचंद काशी व प्रयास को अपनी दो आंखें मानते थे
31 जुलाई 1880 को वाराणसी के लमही में जन्में प्रेमचंद काशी व प्रयाग को अपनी दो आंखें मानते थे। यही कारण है कि यहां उनका अक्सर प्रयाग आना होता था। छायावादी आलोचक गंगा प्रसाद पांडेय, महीयसी महादेवी वर्मा, सुभद्रा कुमार चौहान, भारती भंडार के वाचस्पति पाठक, उमा राव, बालकृष्ण राव से प्रेमचंद के पारिवारिक रिश्ते थे।
चीनी धर्मशाला में रुककर 'गोदान' व 'कर्मभूमि' का अंश लिखे थे
प्रेमचंद बंगाली लेखक क्षितींद्र मोहन मित्र के घर व महादेवी वर्मा के विद्यापीठ में रुकते थे। चीनी धर्मशाला जीरो रोड में रुककर उन्होंने 'गोदान' व 'कर्मभूमि' का कुछ अंश लिखा था। आठ अक्टूबर 1936 को उनकी मृत्यु हो गई।
प्रेमचंद की प्रयाग में उपेक्षा कष्टकारी : प्रो. राजेंद्र कुमार
वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. राजेंद्र कुमार कहते हैं कि प्रेमचंद की प्रयाग में उपेक्षा कष्टकारी है। यह शहर उनकी कर्मभूमि था, यहां उनकी यादें संजोने के लिए सरकार को उचित कदम उठाना चाहिए। उर्दू आलोचक प्रो. अली अहमद फातमी कहते हैं कि प्रयागराज में प्रेमचंद की स्मृतियों को संरक्षित करने के लिए प्रभावी कदम उठाना चाहिए।