प्रयागराज की तीर्थयात्रा नागवासुकि के दर्शन बिना नहीं होती है पूरी, पढि़ए यह खबर
अति प्राचीन इस मंदिर में वासुकि नाग के अलावा शेषनाग की मूर्ति विराजमान हैं। नागवासुकि देव की पत्थर की मूर्ति मंदिर के बीचोबीच विराजमान है। यहां कुंभ अर्धकुंभ व माघ मेले के दौरान लाखों लोग दर्शन-पूजन करने आते हैं।
प्रयागराज, जेएनएन। तीर्थराज प्रयाग में जगह-जगह ऐतिहासिक, पौराणिक और धार्मिक स्थल बिखरे पड़े हैं। उन्हीं में से एक है नागों के राजा माने जाने वाले नागवासुकि का मंदिर। मान्यता है कि प्रयागराज की तीर्थयात्रा पर आने वाले श्रद्धालु जब तक नागवासुकि देव के दर्शन-पूजन न कर लें उनकी तीर्थ यात्रा पूरी नहीं मानी जाती है।
दारागंज मुहल्ले में स्थित है मंदिर
नाग देवता नागवासुुकि का मंदिर पवित्र संगम के करीब बसे दारागंज मुहल्ले में उत्तरी छोर पर स्थित है। गंगा नदी के एकदम किनारे अवस्थित इस मंदिर में नागदेव के दर्शन-पूजन को वैसे तो वर्ष भर श्रद्धालु आते रहते हैं लेकिन कुंभ, अर्धकुंभ और माघ मेले में यहां तीर्थयात्रियों की भारी भीड़ जुटती है जो नागवासुकि देव के दर्शन कर अपनी मनोकामना पूरी करते हैं।
वासुकि व शेषनाग के होते हैं दर्शन
अति प्राचीन इस मंदिर में वासुकि नाग के अलावा शेषनाग की मूर्ति विराजमान हैं। नागवासुकि देव की पत्थर की मूर्ति मंदिर के बीचोबीच विराजमान है। यहां कुंभ, अर्धकुंभ व माघ मेले के दौरान लाखों लोग दर्शन-पूजन करने आते हैं।
पूजन से दूर होता है कालसर्प दोष
पुजारी श्यामधर त्रिपाठी उर्फ पप्पू महाराज का कहना है कि इस मंदिर का पुराणों में भी उल्लेख है। सदियों से यह मंदिर सनातन धर्म को मानने वालों के लिए आस्था का केंद्र रहा है। पौराणिक मान्यता है कि यहां आकर पूजा करने से कालसर्प दोष हमेशा के लिए समाप्त हो जाते हैं। नागवासुकि को शेषराज, सर्पनाथ, अनंत और सर्वाध्यक्ष भी कहा गया है। शिव और श्रीगणेश इन्हें अपने गले में धारण करते हैं। पद्म पुराण में इनको संसार की उत्पत्ति और विनाश का कारक बताया गया है।
सावन मास में जुटती है भारी भीड़
पूरे सावन मास में यहां पूजन और जलाभिषेक के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है। नागपंचमी के दिन तो यहां पर दर्शनार्थियों की भीड़ के चलते तिल रखने तक की जगह नहीं मिलती। श्रद्धालु यहां पर रुद्राभिषेक, महाभिषेक व काल सर्पदोष की शांति के लिए भी अनुष्ठान कराते हैं।
औरंगजेब ने किया था मंदिर तोडऩे का प्रयास
जनश्रुति के मुताबिक मुगल शासक औरंगजेब ने नागवासुकि मंदिर को तोडऩे का प्रयास किया लेकिन वह सफल नहीं हुआ। औरंगजेब मंदिर पहुंचा और तलवार से नागवासुकि की मूर्ति पर वार किया तभी नागवासुकि ने अपना विकराल स्वरूप दिखाया जिसे देख औरंगजेब डरकर बेहोश हो गया।
मंदिर और घाट का हुआ जीर्णोद्धार
आजादी के बाद प्रदेश सरकार ने मंदिर और घाट का जीर्णोद्धार कराया। पिछले कुंभ के दौरान भी पर्यटन विभाग की ओर से मंदिर का रंगरोगन कराने के साथ टाइल्स आदि लगवाया गया। गंगा घाट की ओर जाने वाली सीढिय़ों का जीर्णोद्धार भी कराया गया। घाट की तरफ अब बक्शी बांध से एक सड़क निकलती है जिससे अब गंगातट की तरफ से मंदिर में दर्शन के लिए जाना आसान हो गया है।
अष्टमाधव भी यहां विराजमान
प्रयागराज के ईष्ट देवता बारह माधव में आठवें माधव भी यहां पर विराजमान हैं। पिछले कुंभ के दौरान मंदिर परिसर में ही इनका एक छोटा सा मंदिर अलग से बनवा दिया गया। मंदिर के मुख्य द्वार पर रक्षक के रूप में भीष्म पितामह की मूर्ति भी यहां पर स्थापित है।