Pratapgarh Railway Station: सर्द रातों में पेड़ों के नीचे और फुटपाथ पर ठिठुरते हैं यात्री
Pratapgarh Railway Station जंक्शन के बाहर पोर्टिको के पास टिकट घर बना है। उसके बरामदे में कुछ लोग शरण पाते हैं पर पुलिस उनको कब हटा दे तय नहीं होता। ऐसे में सर्दी की रात यहां पर काटना मुश्किल भरा है। इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है।
प्रयागराज, जेएनएन। ये है यूपी के प्रतापगढ़ रेलवे स्टेशन। शहर के रेलवे स्टेशन पर सामान्य यात्रियों के रैन बसेरे के लिए कोई इंतजाम अभी नहीं है। रेल प्रशासन, नगर पालिका और जिला प्रशासन की ओर से अब तक कोई व्यवस्था नहीं की गई है, जबकि ठंड का असर धीरे-धीरे बढऩे लगा है। ठंड का मौसम शुरू हो चुका है, ऐसे में यहां आने वाले यात्रियों को असुविधा होती है।
रिजर्वेशन टिकट वालों के लिए प्रतीक्षालय है, दिक्कत है जनरल टिकट वालों की
प्रतापगढ़ जंक्शन से करीब 26 गाडिय़ों का फेरा होता है। कई तो यहीं से चलती हैं। दर्जनभर बाहर से आकर गुजरती हैं। इसमें रिजर्वेशन के साथ-साथ साधारण टिकट लेकर यात्रा करने वाले सामान्य गरीब, किसान, मजदूर, छात्र, बेरोजगार भी रहते हैं। इन लोगों को अगर रात में ट्रेन का इंतजार करना है तो बहुत परेशानी होती है। रिजर्वेशन टिकट वालों के लिए तो प्रतीक्षालय बना है, लेकिन जनरल टिकट वालों के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। यह लोग पेड़ के नीचे या फिर दुकानों पर मारे-मारे फिरते हैं। कुछ न मिलने पर खुले आसमान के नीचे रहते हैं। ऐसे में उनके सामानों की चोरी, छेड़छाड़, बेसहारा पशुओं के हमले का भी डर बना रहता है। प्लेटफार्म पर लेटना मना है, अगर लेटे मिल गए तो जीआरपी और आरपीएफ कार्रवाई कर देती है।
रैन बसेरे का इंतजाम नहीं
अभी ठंड जैसे-जैसे बढ़ेगी ऐसे गरीब यात्रियों की समस्याएं भी बढ़ती जाएंगी। बहुत से यात्री महिला पुरुष और बच्चे टिकट घर के सामने नाली के फुटपाथ पर रात भर पड़े देखे जाते हैं। इस बारे में सोचने के लिए कोई तैयार नहीं है। ठंड में शासन जब कंबल भेजता है तो केवल दो-चार दिन जिला प्रशासन और कुछ संगठन कंबल बांटने पहुंचते हैं लेकिन रैन बसेरे का कोई इंतजाम नहीं किया जा रहा है।
यात्रियों को हो रही परेशानी
जंक्शन के बाहर पोर्टिको के पास टिकट घर बना है। उसके बरामदे में कुछ लोग शरण पाते हैं, पर पुलिस उनको कब हटा दे तय नहीं होता। ऐसे में सर्दी की रात यहां पर काटना मुश्किल भरा है। इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। गरीबों की आवाज भी कोई नहीं उठाता। ऐसे में यहां आने पर हर रात यात्रियों की मजबूरी व सिस्टम की संवेदनहीनता देखी जा सकती है। सरकार समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति के चेहरे पर मुस्कान का दावा करती है, पर यहां उसके ही अफसर आंख मूंदे हुए हैं।