संगम नगरी में राजाराम की लस्सी और रबड़ी का स्वाद नहीं लिया तो जानिए कुछ नहीं खाया

राजाराम लस्सी वाले नाम की यह छोटी दुकान तकरीबन सवा सौ साल पुरानी है। दुकान के संचालक सुनील कुमार गुप्ता बताते हैं कि इस दुकान की शुरूआत हमारे बड़े पिताजी माधो प्रसाद गुप्ता ने 1897 में की थी। दुकान का नाम मेरे पिता राजाराम गुप्ता के नाम पर रखा था।

By Ankur TripathiEdited By: Publish:Thu, 04 Mar 2021 07:00 AM (IST) Updated:Thu, 04 Mar 2021 07:00 AM (IST)
संगम नगरी में राजाराम की लस्सी और रबड़ी का स्वाद नहीं लिया तो जानिए कुछ नहीं खाया
शुद्ध, ताजा और लाजवाब स्वाद के कारण लोग हमारी लस्सी और रबड़ी को पसंद करने लगे।

प्रयागराज, जेएनएन। कला, संस्कृति, साहित्य, राजनीति और धर्म की चर्चा होती है तो प्रयागराज का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। लेकिन संगम नगरी अपने बेहतरीन व पारंपरिक खानपान के लिए भी जानी जाती है, खासकर पुराना शहर, जहां की तंग गलियों में विविध पकवान बनते हैं। लोकनाथ की तो बात ही निराली है। इसे स्वाद की गली कहा जाए तो शायद अतिशयोक्ति नहीं होगी। यहीं पर राजाराम लस्सी वाले की सवा सौ साल पुरानी छोटी सी दुकान है जहां की लस्सी और रबड़ी के लोग दीवाने हैं और खींचे चले आते हैं यहां।

लोकनाथ में है इनकी सवा सौ साल पुरानी दुकान

राजाराम लस्सी वाले नाम की यह छोटी सी दुकान तकरीबन सवा सौ साल पुरानी है। दुकान के संचालक सुनील कुमार गुप्ता बताते हैं कि इस दुकान की शुरूआत हमारे बड़े पिताजी माधो प्रसाद गुप्ता ने 1897 में की थी। दुकान का नाम मेरे पिता राजाराम गुप्ता के नाम पर रखा था। मेरे पिताजी भी दुकान पर बैठते थे। तब केवल लस्सी और रबड़ी बनाते थे। शुद्ध, ताजा और लाजवाब स्वाद के कारण लोग हमारी लस्सी और रबड़ी को पसंद करने लगे।

इतने साल बाद न तो दुकान बदली और न ही लाजवाब स्वाद
सुनील गुप्ता बताते हैं कि लोकनाथ में उनकी दुकान उसी स्थान पर है जहां पर सवा सौ साल पहले थी। न तो दुकान का स्थान बदला न ही लुक और हमारी लस्सी, रबड़ी का स्वाद भी पहले की तरह ही लाजवाब है। बताया कि हमारे यहां शुद्धता व सफाई का विशेष ध्यान रखा जाता है। लस्सी के लिए शुद्ध दूध से दही तैयार कराते हैं। शुद्ध दूध से ही रबड़ी भी तैयार की जाती है जिससे वह अधिक स्वादिष्ट लगती है।

रबड़ी का स्वाद लाजवाब, लस्सी के तो कहने ही क्या
शुद्ध दूध से बनी राजाराम की रबड़ी का स्वाद लाजवाब है वहीं लस्सी का स्वाद निराला है। मिट्टी के कुल्हड़ में मिलने वाली गाढ़ी दही की लस्सी के ऊपर रबड़ी और मलाई की मोटी परत होती है जिसके ऊपर ड्राई फ्रूट होता है। केसर और गुलाब जल डालकर सर्व करते हैं तो पीने वाले के मुंह से लस्सी का स्वाद देर तक उतरता नहीं है। मन करता है कि और पीएं, पीते ही जाएं। छोटे कुल्हड़ में लस्सी तीस रुपये की और बड़े कुल्हड़ में साठ रुपये की देते हैं जो शुद्धता और लाजवाब स्वाद के आगे कुछ ज्यादा नहीं लगता है। रबड़ी चार सौ रुपये किलो में देते हैं।

खुरचन, मक्खन मलाई और काली गाजर का हलवा भी गजब का
सुनील बताते हैं कि शुरूआत में यहां केवल लस्सी व रबड़ी ही मिलता था, अब खुरचन मलाई, मक्खन मलाई के अलावा केसरिया जलेबी, मोतीचूर के लड्डू, काली और लाल गाजर से बना हलवा, गुलाब जामुन और समोसा भी मिलता है। खुरचन को दूध से तैयार किया जाता है। जमे दूध को अमावट की तरह परत-दर-परत एक-दूसरे के ऊपर रखा जाता है, बीच में इलायची पीसकर डाला जाता है। खाने में काफी स्वादिष्ट होता है। 460 रुपये किलो की दर से मिलने वाली इस मिठाई की बड़ी मांग रहती है। मक्खन मलाई, दूध और क्रीम के मिश्रण से बनाया जाता है। रात में दोनों को मिलाकर रख देते हैं, सुबह मथकर चीनी आदि मिलाया जाता है। खाने में स्वादिष्ट व सुपाच्य होती है। मक्खन मलाई और काली गाजर का हलवा केवल शर्दियों में ही मिलता है।  बताया कि उनके बड़े भाई सुशील और बेटा सत्यम भी काम में हाथ बंटाते हैं।

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