20 अक्टूबर को चुनी गई कार्यकारिणी ही मान्य:यमुना पुरी

श्री महानिर्वाणी अखाड़ा के सचिव श्रीमहंत यमुनापुरी ने कहा कि 20 अक्टूबर को हुआ चुनाव ही असली है।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 27 Oct 2021 12:11 AM (IST) Updated:Wed, 27 Oct 2021 12:11 AM (IST)
20 अक्टूबर को चुनी गई कार्यकारिणी ही मान्य:यमुना पुरी
20 अक्टूबर को चुनी गई कार्यकारिणी ही मान्य:यमुना पुरी

जागरण संवाददाता, प्रयागराज : दारागंज में सोमवार को अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद अध्यक्ष चुने गए रविंद्र पुरी को मान्यता देने से श्रीमहानिर्वाणी अखाड़ा के सचिव श्रीमहंत यमुना पुरी ने इन्कार कर दिया है। उनका कहना है कि परिषद के पदाधिकारियों का चुनाव 20 अक्टूबर को हरिद्वार में हो चुका है। इसमें समस्त संप्रदाय के महात्माओं को प्रतिनिधित्व दिया गया है। व्यक्तिगत स्वार्थसिद्ध करने के लिए 25 अक्टूबर को नए अध्यक्ष का चुनाव किया गया है, जो नियम व परंपरा के विपरीत है। पूर्व महामंत्री ने अखाड़ा परिषद की गरिमा के विपरीत काम किया है। वह अखाड़ों को आपस में लड़वा रहे हैं। महामंत्री पद परिवर्तनशील है, कोई जीवनभर उस पर नहीं रह सकता, लेकिन पूर्व महामंत्री पद से हटना नहीं चाहते। बहुमत साबित करने के लिए प्रयागराज की बैठक में ऐसे संत बुलाए गए जिन्हें उनके अखाड़ों ने बहिष्कृत किया है। उन्होंने कहा कि निर्मल अखाड़ा के अध्यक्ष श्रीमहंत ज्ञानदेव व सचिव महंत देवेंद्र शास्त्री हैं। पूर्व महामंत्री इनके साथ बैठकर हरिद्वार, प्रयाग, नासिक व उज्जैन में कुंभ की गतिविधियां संचालित कर चुके हैं लेकिन अब उन्हीं को नकार रहे हैं।

विश्व पुरोहित परिषद रविद्र पुरी-हरि गिरि संग : डा. बिपिन

जासं, प्रयागराज : विश्व पुरोहित परिषद ने अखाड़ा परिषद अध्यक्ष श्रीमहंत रविद्र पुरी (निरंजनी अखाड़ा) व महामंत्री महंत हरि गिरि को समर्थन देने की घोषणा की है। परिषद के अध्यक्ष डा. बिपिन पांडेय ने मंगलवार को कहा कि अखाड़ा परिषद में बहुमत के आधार पर चुनाव मान्य होता है। रविद्र पुरी व हरि गिरि को आठ अखाड़ों ने समर्थन दिया है, बहुमत उनके साथ है। इसलिए विश्व पुरोहित परिषद उनका समर्थन करता है। कनखल स्थित श्री महानिर्वाणी अखाड़ा परिषद में हुए चुनाव को पुरोहित परिषद अध्यक्ष ने नियम व परंपरा के विरुद्ध बताया। कहा कि चुनाव तिथि की पहले से घोषणा की जानी थी जो नहीं की गई। गुपचुप तरीके से बैठक करके इच्छा के अनुरूप सबने पद बांट लिया, जो अनुचित है। हरि गिरि ने 25 अक्टूबर की तारीख पहले ही घोषित कर दी थी। इसलिए प्रयागराज में परंपरा का पालन हुआ।

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