अखाड़ा परिषद अध्यक्ष के रूप में नरेंद्र गिरि ने लिए कई कडे़ निर्णय

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद अध्यक्ष के रूप में महंत नरेंद्र गिरि की छवि कड़े निर्णय लेने वाले पदाधिकारी की रही। बतौर अध्यक्ष उन्होंने कई ऐसे निर्णय लिए जिसकी चर्चा देशभर में हुई। सबसे चर्चित था फर्जी संतों की सूची जारी करना। महंत नरेंद्र गिरि ने सूची जारी करके तहलका मचा दिया था। सूची वापस लेने के लिए उन पर काफी दबाव बनाया गया था परंतु वह फैसले पर अडिग रहे।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 21 Sep 2021 05:12 AM (IST) Updated:Tue, 21 Sep 2021 05:12 AM (IST)
अखाड़ा परिषद अध्यक्ष के रूप में नरेंद्र गिरि ने लिए कई कडे़ निर्णय
अखाड़ा परिषद अध्यक्ष के रूप में नरेंद्र गिरि ने लिए कई कडे़ निर्णय

प्रयागराज : अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद अध्यक्ष के रूप में महंत नरेंद्र गिरि की छवि कड़े निर्णय लेने वाले पदाधिकारी की रही। बतौर अध्यक्ष उन्होंने कई ऐसे निर्णय लिए जिसकी चर्चा देशभर में हुई। सबसे चर्चित था फर्जी संतों की सूची जारी करना। महंत नरेंद्र गिरि ने सूची जारी करके तहलका मचा दिया था। सूची वापस लेने के लिए उन पर काफी दबाव बनाया गया था, परंतु वह फैसले पर अडिग रहे।

नरेंद्र गिरि ने वर्ष 1983 में घर छोड़ा था। मन में वैराग्य आने पर गांव से शहर आ गए। तब उनकी उम्र लगभग 22 वर्ष थी। उस समय संगम तट पर कुंभ मेला लगा था। नरेंद्र गिरि श्रीनिरंजनी अखाड़ा के कोठारी दिव्यानंद गिरि के सान्निध्य में रहकर उनकी सेवा करने लगे। कुंभ खत्म होने के बाद दिव्यानंद उन्हें लेकर हरिद्वार गए। वहां उनका समर्पण देखकर उन्हें 1985 में संन्यास की दीक्षा दी और नरेंद्र गिरि नाम दिया। इसके बाद श्रीनिरंजनी अखाड़ा के महात्मा व श्रीमठ बाघम्बरी गद्दी के महंत बलवंत गिरि ने उन्हें गुरु दीक्षा दी। बलवंत गिरि के ब्रह्मालीन होने पर महंत नरेंद्र गिरि ने 2004 मठ श्री बाघम्बरी गद्दी के पीठाधीश्वर तथा बड़े हनुमान मंदिर के महंत का कार्यभार संभाला। मठ व मंदिर को भव्य स्वरूप दिलवाया। वह इस दौरान श्रीनिरंजनी अखाड़ा में सचिव बनाए गए। नरेंद्र गिरि खुद का वैभव बढ़ाने के लिए हमेशा प्रयासरत रहे। किस्मत ने करवट बदली और नासिक कुंभ से पहले 2014 में उन्हें अयोध्या निवासी महंत ज्ञानदास की जगह संतों की सबसे बड़ी संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष चुना गया। अध्यक्ष बनने के बाद नरेंद्र गिरि का रुतबा अचानक नेताओं व अधिकारियों के बीच बढ़ गया। जिस निरंजनी अखाड़े में वह हाशिए पर रहते थे, उसमें उनका महत्व बढ़ गया। तमाम प्रभावशाली लोग किनारे हो गए। नरेंद्र गिरि का बढ़ता कद उन्हें अखरने लगा। अखाड़ा परिषद अध्यक्ष के रूप में महंत नरेंद्र गिरि ने 2017 में किन्नर व परी अखाड़े को मान्यता देने से इन्कार कर दिया। फिर 2018 में फर्जी महात्माओं की सूची जारी करवाई। इसमें आशाराम बापू, राम रहीम, शनि उपासक महामंडलेश्वर दाती महाराज, महामंडलेश्वर नित्यानंद जैसे चर्चित नाम थे। कुछ अखाड़ों ने सूची का विरोध भी किया था, लेकिन, नरेंद्र गिरि टस से मस नहीं हुए। विरोध की चिनगारी यहीं से सुलगने लगी। वर्ष 2019 प्रयागराज कुंभ में जूना अखाड़ा ने किन्नर अखाड़ा को अपने अधीन कर लिया। तब भी उसे 14 वें अखाड़े के रूप में मान्यता नहीं मिली। हर कुंभ में संबंधित प्रदेश के मुख्यमंत्री, केंद्र व प्रदेश के मंत्री, सत्ता पक्ष व विपक्ष के रसूखदार नेता, अधिकारी नरेंद्र गिरि के इर्द-गिर्द घूमते थे। हरिद्वार में 10 अक्टूबर 2019 को नरेंद्र गिरि का अखाड़ा परिषद अध्यक्ष का कार्यकाल पुन: पांच साल के लिए बढ़ाया गया। लगातार दूसरी बार अध्यक्ष बनने से नरेंद्र गिरि का रुतबा काफी बढ़ गया था।

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अध्यक्ष के रूप में अहम निर्णय

-फर्जी संत महात्मा की सूची जारी करना

-किन्नर व परीक्षा अखाड़ा को 14वें अखाड़े के रूप में मान्यता नहीं देना

-साई विवाद का समर्थन करना

-स्वयंभू शंकराचार्यो का खुलकर विरोध

-उज्जैन, प्रयागराज व हरिद्वार कुंभ में 13 अखाड़ों को आर्थिक मदद दिलाना

-घर से संबंध रखने वाले महात्माओं को अखाड़े से बाहर करना

-मठ-मंदिरों के सरकारी अधिग्रहण का विरोध

-तीन तलाक, मतांतरण का विरोध किया

-ईसाई मिशनरियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग

-बकरीद पर जीव हत्या का विरोध

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