Narendra Giri News: शादी तय होने पर घर छोड़ दिया था, परिवार में कहलाते थे बुद्दू

सरायममरेज के मियापुर छतौना के पास स्थित निवारी गांव के निवासी थे महंत नरेंद्र गिरि। इनके पिता भानु प्रताप सिंह वकील व आरएसएस के स्वयंसेवक थे। चार भाइयों में नरेंद्र गिरि दूसरे नंबर पर थे। बचपन का नाम नरेंद्र सिंह था प्यार से सभी बुद्दू कहकर पुकारते थे।

By Ankur TripathiEdited By: Publish:Thu, 23 Sep 2021 06:50 AM (IST) Updated:Thu, 23 Sep 2021 07:06 PM (IST)
Narendra Giri News: शादी तय होने पर घर छोड़ दिया था, परिवार में कहलाते थे बुद्दू
16 सितंबर को अंतिम बार महंत नरेंद्र गिरि ने की थी अपने मामा से फोन पर बात

प्रयागराज, जागरण संवाददाता। जनवरी 2001 को सीएमपी डिग्री कालेज के शिक्षक प्रो. महेश सिंह के लैंडलाइन नंबर पर आयी काल। दूसरी ओर से आवाज आयी डा.साहब, मैं महंत नरेंद्र गिरि बोल रहा हूं, कैसे हैं आप...। यह सुनकर वो अचंभित हो गए। बोले मैं किसी नरेंद्र गिरि को नहीं जानता। आप कौन हैं ? फिर हंसते हुए आवाज आयी- मामा मैं बुद्दू हूं। मैंने संन्यास ग्रहण कर लिया है। सारे संस्कार पूरे हो गए हैं, सिर्फ घर से भिक्षा लेने की परंपरा पूरी करनी है उसे आपको करवाना है। महंत नरेंद्र गिरि के मामा प्रो. महेश सिंह बताते हैं कि नरेंद्र का फोन आने पर ही घरवालों को पता चला कि उन्होंने संन्यास ग्रहण कर लिया। वे ननिहाल घनुपुर बरौत के पास स्थित गिर्दकोट गांव आए, सबको प्रणाम किया। भिक्षा की प्रक्रिया पूरी होने के बाद कह दिया कि अब आप लोगों से मेरा कोई संबंध नहीं है। उसके बाद से मुझे मामा की जगह डॉक्टर साहब कहने लगे।

बचपन में प्यार से बुद्द पुकारते थे नरेंद्र गिरि को

मूलत: प्रयागराज के गंगापार इलाके में सरायममरेज के मियापुर छतौना के पास स्थित निवारी गांव के निवासी थे महंत नरेंद्र गिरि। इनके पिता भानु प्रताप सिंह वकील व आरएसएस के स्वयंसेवक थे। चार भाइयों में नरेंद्र गिरि दूसरे नंबर पर थे। बचपन का नाम नरेंद्र सिंह था, प्यार से सभी बुद्दू कहकर पुकारते थे। इनके बड़े भाई अशोक सिंह एक इंटर कालेज में बाबू थे। तीसरे नंबर के अरविंद सिंह दादरी स्थित एक इंटर कालेज में प्रवक्ता हैं, जबकि चौथे नंबर के आनंद सिंह होमगार्ड विभाग में कार्यरत हैं। बहन उर्मिला की प्रतापगढ़ में शादी हुई है। प्रो. महेश बताते हैं कि नरेंद्र गिरि आठ साल व 10 साल की उम्र में भी घर से भागे थे। उन्हें एक बार मुंबई से पकड़कर लाया गया। उन्होंने ननिहाल में रहकर 10वीं तक की पढ़ाई की।

बारहवीं में फेल होने पर करने लगे थे नौकरी

12वीं में फेल होने पर काम ढूंढने लगे। बैंक आफ बड़ौदा के मडिय़ाहूं स्थित ब्रांच में कुछ महीने संविदा पर क्लर्क की नौकरी किया। इसी बीच घर वाले उनकी शादी तय करने लगे तो 1983 में घर छोड़ दिया। श्रीनिरंजनी अखाड़ा के कोठारी दिव्यानंद गिरि की सेवा में लग गए। प्रो. महेश बताते हैं कि उन्होंने भारतीय राजनीतिक चिंतन नाम की पुस्तक लिखी है, उसका विमोचन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से करवाना चाह रहे थे। इसके लिए 16 सितंबर को नरेंद्र गिरि से बात हुई थी। उन्होंने पहले की तरह बिंदास होकर बात किया था।

घर से नहीं रखा संबंध

प्रो.महेश बताते हैं कि नरेंद्र गिरि ने घर के किसी सदस्य से संपर्क नहीं रखा। न ही हम लोग मठ जाते थे। कभी गए भी तो वह आम श्रद्धालुओं की तरह व्यवहार करते थे। 2007 में चचेरे भाई कमलेश की मृत्यु पर पैतृक गांव गए थे, उसके बाद उनका कोई संबंध नहीं था।

हनुमान जी का पैसा है, गलत खर्च करोगे तो पाप लगेगा

महंत नरेंद्र गिरि सरजू प्रसाद सिंह जूनियर हाई स्कूल आमीपुर के संरक्षक थे। हर वर्ष 27 नवंबर को स्थापना दिवस पर जाते थे। इसके जरिए गरीब व साधनहीन बच्चों को शिक्षित करवाते थे। प्रधानाचार्य से कहते थे कि हर जरूरतमंद बच्चे को पढ़ाओ उसका खर्च मैं दूंगा। यह पैसा हनुमान जी का है, इसलिए सही खर्च करना। गलत खर्च करोगे तो पाप लगेगा।

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